Sunday, September 26, 2010

ज़हर और अमृत-हिन्दी व्यंग्य कवितायें (zahar aur amrit-hindi vangya kavitaen)

सुनते हैं हर शहर में
दूध, दही और सब्जी के साथ
ज़हर बिक रहा है,
फिर भी मरने वालों से अधिक
जिंदा लोग घूमते दिखाई दे रहे हैं,
सच कहते हैं कि
पैसे में बहुत ताकत है
इसलिये नोटों से भरा है दिल जिनका
बिगड़ा नहीं उनका तिनका
बेशर्म पेट में जहर भी अमृत की तरह टिक रहा है।
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हलवाई कभी अपनी मिठाई नहीं खाते
फिर भी तरोताजा नज़र आते हैं।
बेच रहे हैं जो सामान शहर में
उनकी दवा और सब्जी शामिल हैं जहर में
कहीं न उनके मुंह में भी जाता है
मग़र गज़ब है उनका हाज़मा
ज़हर को अमृत की तरह पचा जाते हैं।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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Sunday, September 19, 2010

जांच और बहस-हिन्दी कविता (janch aur bahas-hindi kavita)

बेरहम कातिलों ने कर दिया
आम इंसान का सरेराह कत्ल
उसकी जांच जारी है,
पहरेदार ढूंढ रहे चेहरे
मगर अक्लमंदों की बहस बंद है,
वह खड़े इंतजार में जानने के लिये
कातिलों के नकाब का क्या रंग है
जब चल जायेगा तब ही तय होगा कि
चिल्लाने की अब किसकी बारी है।
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Sunday, September 12, 2010

पैसा जैसा नचायेगा-हिन्दी व्यंग्य कविता (paisa jaisa nachayega-hindi vyangya kavita)

लोगों को जो धर्म के नाम पर बहलाये
वह धर्म गुरु बन जायेगा,
अपनी कमर को चाहे जैसे लचकाये
वह अभिनेता बन जायेगा,
मुखौटा लगाये बुत की तरह कुर्सी पर सज जाये
वह शासक बन जायेगा,
बशर्ते किसी दौलतमंद को यह बताये
कि उसका बंदर बन जायेगा,
वैसे नाचेगा, उसका पैसा जैसा नचायेगा।
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