Saturday, December 26, 2015

दर्द की धारा-हिन्दी कविता(Dard Ki Dhara-Hindi Kavita)


भाषा के अज्ञानी
बोलने से अच्छा
वह मौन रहें।

अपने दर्द पर
चिल्लाने से अच्छा है
वह उसे सहें।

कहें दीपकबापू सांसे लेते हुए
सभी लोग चेतन नहीं होते
जड़ता जिनकी आदत बन गयी
बेलगाम जुबान से
भटकायें अपना मकसद
उससे अच्छा
दर्द की धारा में बहें।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
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Wednesday, December 16, 2015

संघर्ष की विरासत-हिन्दी कविता(Samgharsh Ki Virasat-Hindi Kavita)


सभी ने जागते हुए
अपनी आंखों में
सपने संभाल रखे हैं

श्रम किये बिना
चढ़ जायें शिखर पर
ऐसे विचार पाल रखे हैं।

कहें दीपकबापू संघर्ष से
जिनका रोज का नाता है
सिंहासन पाने की
चाहत नहीं करते
जिन्हें मिली दौलत की विरासत
पाप का माल वही रखे हैं।
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Monday, December 07, 2015

जवाब देने वाले-हिन्दी कविता(Javab Dene Wale-Hindi Poem)


चौपायों का काफिला
चलता रहेगा यूं ही
धुंआ उड़ाते हुए।

घर आसमान
छूते रहेंगे यूं ही
कुंआ तुड़ाते हुए।

कहें दीपकबापू विकास पर
कोई सवाल न उठाना
ताकतवर से लड़ना बेकार
कमजोर पर दर्द लुटाना
जवाब देने वाले वैसे भी चल देंगे
हुंआ हुंआ उड़ाते हुए।
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Saturday, November 28, 2015

जब तक छिपा सच-हिन्दी कविता(Jab Tak Chhipa Sach-Hindi Kavita)

समय की बात है
प्रतिष्ठा के शिखर पर
सुंदर चेहरा दिखाकर
चढ़ जाते हैं।

वाणी से निकलती
जब बेसुरी आवाज
बदनामी के रसातल की तरफ
बढ़ जाते हैं।

कहें दीपकबापू नीयत के खेल में
तभी तक चलती चालाकी
जब तक सच छिपा
पोल खुलते ही बड़ी छवि के पेड़
ताश के पत्ते की तरह
झड़ जाते हैं।
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Thursday, November 19, 2015

अपना दिल बहलायें-हिन्दी शायरी(Apna Dil Bahlayen-Hindi Shayri)


सपनों के पांव नहीं होते
कब तक सोच की
बैसाखियों के सहारे चलायें।

ख्वाबों का रास्ता नहीं मिलता
कब तक अंधेरे में
ख्यालों का चिराग जलायें।

कहें दीपकबापू सच से
कब तक मुंह छिपाओगे
कुछ देर भले ही
सपने और ख्याल से
अपना दिल बहलायें।
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Monday, November 09, 2015

वानर और इंसान-हिन्दी कविता(Insan aur vanar-Hindi kavita,Men Monkey-Hindi poem)


वानर का इन्सान
अभिनय करे
कलाकार कहलाये।

वानर जब करे
इंसान जैसा करतब
तब भी वानर कहलाये।

कहें दीपकबापू अदायें बिकती
बाज़ार में महंगे भाव
कोई हंसे कोई खाये घाव
हम तो इंसान के साथ
वानर के दिल को भी सहलायें।
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Monday, November 02, 2015

चंदन के पेड से सांप जैसे लिपटे, भ्रष्टचारी समाज में वैसे चिपटे-दीपकबापू वाणी(Chanda ke ped se saanp lipte Bhrashtachari Samaj mein vaise chipte-DeepakBapuwani)

आदर्श की चर्चा जब बढ़ती, बात मनाने की जिद्द भी चढ़ती है।
दीपकबापूभलाई की दुकान में, दाम के मोल से दया चढ़ती है।।
-------------
घर में सभी विराजते देवरूप, सड़क पर  आकर दानव हो जाते।
दीपकबापूभलाई बिकती नहीं, प्रसिद्ध पाखंडी  मानव हो जाते हैं।।
-------------
कहीं कातिल नायक कहलायें, कहीं शिकार शहीद बन जायें।
दीपकबापूमौत के खेल में, कलमकार भी मुर्दा शब्द सजायें।।
------------
घर में ही स्वर्ग का विज्ञापन, पढ़कर मन चहक ही जाता है।
दीपकबापूआंखें खुली बुद्धि बंद, इंसान बहक ही जाता है।।
-------------
बड़े बोल पर्दे पर आकर बोलें, चरित्र से छोटे भी होते लोग।
दीपकबापूजीभ से चबाते शब्द, अर्थ में हो जैसे गणित योग।।
------------
कहीं रोटी कहीं मांगते भात, कहीं मिले कही पड़ जाती लात।
दीपकबापूयाचक रूप में, अपमान लगती मान की भी बात।।
------------------
कभी राम कभी हनुमान भजते, कभी सांई नाम से उलझें।
दीपकबापूओम हृदय में रखें, तत्वज्ञान से बैर को सुलझें।।
.................................
सबसे कहें छोड़ स्वयं मोह जोड़ें, धर्म बनायें पेड़ धन फल तोड़ें।
दीपकबापूरहें महल में त्यागी, दान से दयालुता का नल जोड़ें।।
----------------

अंग्रेजी के ढेर सारे शब्द जोड़े, भाषा के पांव विकास पथ पर मोड़े।
दीपकबापू नहीं समझते हिंग्लिश, शब्दों के अर्थ जैसे लंगड़ाते घोड़े।।
------------------
चंदन के पेड से सांप जैसे लिपटे, भ्रष्टचारी समाज में वैसे चिपटे।
दीपकाबापू ईमानदार वीरों जैसे, अभावों में त्याग से लड़ते निपटे।।
----------------
मदिरा से मनमस्ती आती अगर, मदिरालयों में स्वर्ग दिख जाता।
दीपकबापूविष का नाम अमृत, बर्बादी का नाम मजा लिख लाता।
-------------
दर्द बिकता महंगा बाज़ार में, रोती कवितायें लिखना सरल।
दीपकबापूहास्य रस में नहायें, न पीयें आंसुओं का गरल।।
---------------

खाने में सब्जी हो या मांस, भरे पेट वालों की बहस जारी।
दीपकबापूबाज़ार नहीं जाते कभी, जताते हल्के तर्क भी भारी।।
-----------------
 गैरों पर फब्तियां कसना सहज, अपने गिरेबां में कोई नहीं झांकता।
दीपकबापूअपने दर्द पर रोयेंपराये पर हर कोई हंसी टांकता।।
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Wednesday, October 21, 2015

झगड़ा बिकता है-हिन्दी कविता(Jhagada bikta hai-Hindi Kavita)

झगड़ा बिकता है-हिन्दी कविता(Jhagada bikta hai-Hindi Kavita)
कोई भी झगड़ा
प्रचार बाज़ार में बिक जायेगा
शर्त यह दो जात
या धर्म के बीच हो।

एक के उच्च होने की
तारीफ में गुणगाान
दूसरा जैसे नीच हो।

कहें दीपकबापू विज्ञापन युग में
सनसनी बिकती है वहीं
जहां राम सीता हो
वहां जरूर मारीच हो
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Saturday, October 10, 2015

शायद यही विकास है-हिन्दी कविता(Shayad yahi Vikas hai-Hindi Kavita)


वातानुकूलित कक्ष में
मद्धिम प्रकाश के बीच
टेबलों पर जाम टकराते
लोग बिखेरते कृत्रिम रुआंसी हसंी
शायद यही विकास है।

सड़क पर धूंआ फैलाते
जोर की घ्वनि बजाते
आधुनिक चौपाये जाम लगाये हैं
शायद यही विकास है।

दूरसंदेश चलित यंत्र
हाथ में थामे जवां दिल
इश्क में उद्यमी की तरह व्यस्त
मगर रोजगार से पस्त
शायद यही विकास है।
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Saturday, October 03, 2015

बहाना ढूंढना जरूरी नहीं है-हिन्दी कविता(Bahana Dhoondhna jaroori nahin hai-HindiKavita)

बिना बात के ही
हंसना सीख लो
खुश होने के बहाने
ढूंढना जरूरी नहीं है।

कोई प्रसंग न हो
ताली बजाना सीख लो
मौन रहने का बहाना
ढूंढना जरूरी नहीं है।

कहें दीपकबापू दिल से
खुद खेलना सीख लो
चल पड़ो अपने पांव पर
टहलने का बहाना
ढूंढना जरूरी नहीं है।
............................
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Monday, September 28, 2015

फेसबुक का महत्व व्हाट्सअप के प्रचलन से कम हुआ(FaceBook ka Mahatva WhatsApp ke prachalan nem kam hua)

             हमारा अंतर्जालीय अनुभव कहता है कि व्हाट्सअप के उदय के बाद फेसबुक की स्थिति गिरावट की तरफ बढ़ रही है। फेसबुक पर सामग्री कंप्यूटर पर ज्यादा सहज है जबकि व्हाट्सअप स्मार्टफोन के कारण ज्यादा चल रहा है। फेसबुक से व्यापक संपर्क की सुविधा है पर भारत में लोग अपने सीमित संबंधों पर निर्भर रहने की इच्छा से व्हाट्सअप की तरफ जा रहे हैं। हम जब फेसबुक पर चैट वाले स्तंभ पर नज़र डालते हैं तो अधिकतर मित्र मोबाइल पर सक्रिय दिखते हैं। हमारे परिचितों में अनेक युवा मोबाइल से ही फेसबुक पर सक्रिय रहे हैं पर अब वह व्हाट्सअप पर संपर्क रखना चाहते हैं।  पहले ब्लॉग पर तो परिचित इंटरनेट  की सुविधा होने के बावजूद हमारे साथ नहीं जुड़े। हमने दूसरों की देखा देखी फेसबुक पर सक्रियता बढ़ाई पर अब व्हाट्सअप के आने के बाद ऐसा लगता है कि हम अपने निजी संपर्क खो रहे हैं।  फेसबुक पर जहां अपने तथा दूसरे लोगों से संपर्क रखने की सुविधा थी उससे हम जो आनंद उठा रहे थे वह व्हाट्सअप के आने से कम हो गया है। कहने को फेसबुक के 1 अरब सदस्य है पर उनकी सक्रियता में कमी दर्ज की गयी कि पता नहीं पर हमारा मानना है कि कम से कम भारत में तो इससे मोहभंग हो रहा है।
दुनियां में सभी तरह का आतंकवाद विश्व में राज्य प्रबंध से प्रायोजित है इसलिये मगर विदेशी रणनीतिकार इसे अपनी सुविधा से छिपाते और बताते हैं। विकसित देशों में निर्मित हथियार आतंकवादी भी खरीदते हैं इसलिये उनसे अच्छे बुरे की पहचान की आशा बेकार  लगती है। जब विकासित राष्ट्र अच्छे बुरे आतंकवाद की पहचान समझ लेंगे उस दिन ही इस समस्या का हल होगा। पाकिस्तान आंतक निर्यात से धन अर्जित करता है, जब उसे दंड नहीं मिलेगा वह चुप नहीं बैठेगा। होटल, विमानन और रेल का निजीकरण पूरी तरह तभी किया जाये पहले उपभोक्ता संरक्षण नियम मजबूत हों। वरना आमजन को परेशानी होगी।
.....................
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Sunday, September 20, 2015

विश्वास की कमी-हिन्दी कविता(Vishwas ki kami-hindi poem)

इंसान की आस से
भरी नज़र
इंसानी नीयत पर ही जमी है।

वफा निभाये कौन
पूरे ज़माने में
आपसी विश्वास की कमी है

दीपकबापूवफा कर नहीं सके
अपनी लाचारियों से ही थके
किसे सुनायें अपनी कहानी
सभी की जिंदगी
दौलत के दरवाजे तक ही थमी है।
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Sunday, September 13, 2015

हिन्दी का अंतरिक्षजाल-हिन्दी दिवस पर कविता(Hindi ka Antrikshjal-HindiDiwas par kavita)


रुपये के पीछे लगे दीवाने
शब्द के अर्थ से
अधिक नहीं जूझते हैं।

भाषा के व्यापारी
आंकड़ों में आंकते लाभ
साहित्य की पहेली
कभी नहीं बूझते हैं।

दीपकबापूकागज के कलमकार
जमीन पर रैंगने के आदी है,
सम्मानों के लिये
राजपथ पर विचरने वाले कीड़े
हिन्दी भाषा के
अंतरिक्षजाल में लाने के वास्ते
अधिक नहीं जूझते हैं।
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