जिसमें थक जायें वह भक्ति नहीं है
आंसुओं में कोई शक्ति नहीं है।
कहें दीपकबापू मन के वीर वह
जिनमें कोई आसक्ति नहीं है।
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सड़क पर चलकर नहीं देखते
वातानुकूलित कक्ष में बांचे दर्द
कहें दीपकबापू थैला लेकर घूमे
महलों में जा बसे अब हमदर्द।
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राम का नाम लेते हुए
महलों में कदम जमा लिये।
कहें दीपकबापू मंदिर के बाहर
धर्मनिरपेक्ष प्रसाद के पेड़े सबको थमा दिये।
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शौचालय में सोचना बुरा नहीं
अगर जिंदगी संवरने की बात हो।
दिनभर शौचलाय की सोचना बुरा है
कहीं चिंताओं न पूरी रात हो।।
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अपनी नीयत के दाग छिपते नहीं
लोग ज़माने पर उंगली उठाते हैं।
कहें दीपकबापू धवल हृदय है
वही सब पर प्रशंसा फूल लुटाते हैं।
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थकवाट बीमारी के बनाकर बहाने
बच रहे काम से सभी सयाने।
कहें दीपकबापू अपनी जुबा के शब्द
सच करते प्रकट यह भी जाने।
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इंसानों का क्या भरोसा
कब दोस्त से दुश्मन बने।
कहें दीपकबापू दोष किस दें
सब लोग हालातों के गुलाम जो बने।
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