जैसे ख्याल वैसी जिंदगी चलती है,
सूरज डूबा तो चिरोग की लौ जलती है।
कहें दीपकबापू बेकसूर घड़ी की सुई
बुरा समय सोच की गलती है।
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शोर से दिल जीता नहीं जाता,
मौन से दिन बीता नहीं जाता।
कहें दीपकबापू अमृत अनुभूति है
कोई मुख से पीता नहीं जाता।
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धूप में देह से निकला है पसीना,
सिर से पांव बह रहा जैसे नगीना।
कहें दीपकबापू यूं बन रही ऊर्जा
पलंग पर सोते सिकुड जाता सीना।
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फुर्सत में उनके नारे सुन लेते हैं,
शब्द पुराने नयी धुन देते हैं।
कहें दीपकबापू जनचर्चा नहीं होती
बेबस लोग यूं ही उन्हें चुन लेते हैं।
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कंप्यूटर में डाटा या घड़े में पानी भरेगा,
किताब का शब्द भविष्य भरेगा।
कहें दीपकबापू चाकरी के सब दीवाने
लुटेरा ही अब व्यापार करेगा।
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