Sunday, May 29, 2016

पाखंड के दौर में-हिन्दी कविता(Pakhand ke Daur mein-Hindi Kavita)

अखबार का ज़माना है
विज्ञापन देकर 
चाहे जितने तमगे लगा लो।

पर्दे पर चलती कहानी में
अपने नाम के आगे
चाहे जितनी उपाधि लगा लो।

कहें दीपकबापू कर्म पर
अब किसका विश्वास रहा
फल में देरी पर
इंतजार नहीं रहा।
पाखंड के दौर में
धोखे की चाहे जितनी
बड़ी दुकान लगा लो।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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Wednesday, May 11, 2016

राजरोग-हिन्दी कविता(RajRog-Hindi Poem)

संवेदनारहित बाज़ार में
अपना फटेहाल दिल
सभी ने सजा दिया है।

बहरा चुकी बस्ती में
जोर की आवाज में
अपना दर्द बजा दिया है।

कहें दीपकबापू सहृदयता से
ज़माने ने तोड़ दिया नाता
सुविधा के सामनों के सहारे
राजरोग से तय होता पैमाना
किसने कितना मजा लिया है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
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