Monday, August 31, 2015

महंगी हो जाती जब सांसे-हिन्दी कविता(mahangi ho jati jab sansen-hindi poem's)


 महंगाई का पहिया
समाज के विश्वास को
रौंदे जा रहा है।

कौन है जो ज़माने की
मेहनत के दाम छीनकर
अपने घरौंदे बना रहा है।

कहें दीपकबापू जिंदगी में
महंगी हो जाती सांसें जब
इंसान की सोच सिमट जाती तब
पसीने से महल बनाने वाला
टूटे आशियानों क्यों रहता
यह प्रश्न कौंधे जा रहा है।
.............................
अपनी कामयाबी से कम
दूसरे के दिल जलने पर
गर्व लोग जताते हैं।
कहें दीपकबापू इतिहास गवाह
पुराने नायकों की पूजा में
खलनायक का पुतला जलाते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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Thursday, August 27, 2015

इंसान का दिल-हिन्दी कविता(insan ka dil-hindi kavita)

भरोसा कोई निभाये
यह नहीं दिखता
धोखे की खबर बनती है।

रिश्ता निभाये कोई
ताली नही बजती
झगड़े पर नज़र जमती है।

कहें दीपक बापू इंसान का दिल
कभी दूसरे के जख्म पर
मरहम लगाने को तैयार नहीं होता
गैर दर्द से कराहे
उसकी खुशी बनती है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
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Saturday, August 22, 2015

भारत पाकिस्तान के टीवी चैनलों पर बातचीत तो हो गयी अब क्या बचा है-हिन्दी लेख(Bharat pakisthan ke TV chainlon par baatchit ho gayi ab bacha kya hai-hindi article)

                                   कभी कभी तो लगता है कि पाकिस्तान का नाम भारत के  प्रचार माध्यमों के लिये एक फरिश्ते की तरह है जिससे उनको विज्ञापनों के बीच भारी कमाई होती है। भारतीय चैनल पर ही पाकिस्तान के टीवी पत्रकार हामिद मीर ने बातचीत करते हुए यही कहा कि जिस तरह का विवाद चल रहा है उससे दोनेां तरफ की टीवी चैनलों की रेटिंग ही बढ़ रही है। उनकी बात से तो यह  तो लगा कि भारत विरोध भी अब पाकिस्तान में कमाई का साधन बना हुआ है।  अगर उनकी बात माने तो शायद दोनों तरफ के चैनल यही चाहते हैं कि कुछ विवाद चलता रहे और उनको दर्शक मिलते रहे।  पाकिस्तान के सुरक्षा सलाहकार भारत आयें या नहीं पर उनकी यात्रा को लेकर टीवी चैनलों पर समाचार के बीच विज्ञापनों का दौर चल रहा है उससे तो ऐसा लगता है कि यह यात्रा प्रचार माध्यमों के स्वामियों के प्रायोजन पर ही निर्भर है।
                                   हम जानते हैं कि दुनियां भर के टीवी चैनल उन लोगों के हाथ में जिनके घर में दौलत दासी की तरह विराजमान रहती है।  यही लोग आर्थिक, सामजिक, खेल फिल्म तथा कला तथा प्रचार संस्थाओं पर भी अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष नियंत्रण रखते हैं। इनके धंधे सफेद कम काले और पीले ज्यादा होते हैं। अपनी कमाई बनाये रखने के लिये वह सामान्य जन का ध्यान ऐसे विषयो की तरफ लगाते हैं जिनसे उनको न बल्कि कमाई हो वरन् राज्य प्रबंध भी उनकी तरफ न देखे।
                                            हामिद मीर से भारतीय पत्रकार ने सहमति जताई पर सच यह है कि इसके बावजूद यह संभावना नहीं है कि उसका चैनल अपने विषय को राष्ट्रभक्ति की चाशनी में डुबोकर न पेश करे। वामपंथी आधुनिक अर्थतंत्र में कंपनी को दैत्य की उपाधि देते हैं। इनके स्वामियों का जिस तरह पूरे विश्व पर नियंत्रण है उससे तो यही लगता है कि हर देश पर उनका निंयत्रण है तब यह शंका होती है कि हम उनके प्रायोजित पर्दे पर जो पात्र देखते हैं वह कहीं उनके वेतनभोगी निर्देशकों के संकेतों पर तो काम करते हैं।  जिस तरह भारत पाक की बातचीत टीवी चैनलों पर आधिकारिक बयानों से हो रही है उससे तो यह प्रश्न भी उठता है कि सुरक्षा सलाहकार आयें या नहीं फर्क क्या पड़ता है?
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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Saturday, August 15, 2015

शब्द और दर्द-हिन्दी कविता(shabd aur dard-hindi poem)

हर कदम पर दर्द का बसेरा
बयान करते हुए
शब्द अपने अर्थ खो रहे हैं।

चारों तरफ फैले हमदर्द
 अकेले शब्द से करते सहायता
दलाली में खो रहे हैं।

कहें दीपक बापू जमीन पर
इंसान के मर गये जज़्बात
उम्मीदों के शब्द पंख
 फरिश्तों की तलाश करते
आकाश में खो रहे है
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Tuesday, August 11, 2015

लालच और लोभ के महल-हिन्दी कविता(lalach aur lobh ke mahal-hindi poem)

जिंदगी की राह में
समस्याओं का दलदल
चलना आसान नहीं है।

कामनाओं के उगे पेड़ों का
जंगल घना है
बचना आसान नहीं है।

कहें दीपक बापू फकीरी में
जिदंगी ज्यादा सरल लगती है
सोच आती भी जरूर
मगर लालच और लोभ के महल
छोड़ना आसान नहीं है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Thursday, August 06, 2015

पाकिस्तान का अस्तित्व भारत हित में मानना ठीक नहीं-हिन्दी चिंत्तन लेख(pakistan ka astitva bharat hit mein manna theek nahin-hindi thought article)


                     पाकिस्तान भारत के लिये अपने अस्तित्व बने रहने तक ही समस्या बना रहेगा।  अब भारत को पाकिस्तान नाम की इस बीमारी का उपचार करना ही होगा वरना वह चीन से मिलकर भारत के टुकड़े कर देगा।  पाकिस्तान धार्मिक  आधार पर भारत का विरोध करता है।  वहां के रणनीतिकारों का यह मानसिकता है कि भारत जिसे अच्छा कहेगा उसे वह बुरा और जिसे बुरा कहेगा उसे वह अच्छा कहेगा।  इसका प्रमाण यह है कि  भारत से भागे अपराधी उसके लिये फरिश्ते की तरह हैं और जो भारत की सेवा करने वाले शैतान हैं।
पाकिस्तान का आतंकवादी जम्मू कश्मीर के उधमपुर में जिंदा पकड़ा गया है। अभी हाल ही में कनाडा के पाकिस्तानी  मूल के एक लेखक ने यह  एतिहासिक तथ्य  उजागर किया था कि ब्लूचिस्तान भारत पाकिस्तान से पहले आजाद हो गया था। कश्मीर पर पूरी तरह से कब्जा करने में नाकाम पाकिस्तान ने बाद में ब्लूचिस्तान पर कब्जा किया। लेखक के अनुसार ब्लूचिस्तान अब भी आजादी की जंग लड़ रहा है।  पाकिस्तान ने उसी तरह सिंध पर कब्जा कर रखा है। हमारा मानना है कि भारत अब खुलमखुल्ला सिंध और ब्लूचिस्तान के साथ ही पख्तुनिस्तान का समर्थन कर वहां के लोगों की सहायता करे। भारत किसी इलाके को अपने साथ भले न मिलाये पर पाकिस्तान के चार टुकड़े अवश्य करे। इसके अलावा भारतीय उपमहाद्वीप में शांति का कोई उपाय नज़र नहीं आता।
                              याद रखें पाकिस्तान भारत से धार्मिक आधार पर विरोध कर अपने यहां के जातीय तथा क्षेत्रीय समूहों के आपसी संघर्ष को ढंकने का प्रयस करता है। इतना ही नहीं पाकिस्तान के रणनीतिकारों का एक वर्ग भारत से सांस्कृतिक भिन्नता दिखाने के लिये धार्मिक स्तर पर आतंकवाद का समर्थन करता है। इसलिये पाकिस्तान पर कभी यकीन नहीं करना चाहिये। भारत के रणनीतिकारों को इस तरह के विचार से अब मुक्त होना चाहिये कि पाकिस्तान का अस्तित्व भारत के हित में है।
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Saturday, August 01, 2015

समाजवाद के देसी सिद्धांतों के पालन से ही समाज में समरसता संभव-हिन्दी चिंत्तन लेख (samajwad ke desi siddhanton se samaj mein samrasta sambhav-hinti thought article)


                              आमतौर भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा को केवल यज्ञ हवन और पूजा की प्रचारक के रूप में समझा जाता है।  बहुत कम लोगों को इस बात का ज्ञान है कि  श्रीमद्भागवत् गीता में समाजवाद का ऐसा गूढ़ सिद्धांत है, अगर उसे अपनाया जाये तो भारत में धरती पर स्वर्ग की कामना की भी जा सकती है पर पश्चिम से आयातित विचार से तो केवल सामाजिक वैमनस्य ही फैल सकता है। श्रीगीता के ज्ञान साधक यह अच्छी तरह से जानते हैं कि मनुष्य में किसी भी आधार पर भेद दृष्टि रखना अज्ञान का प्रमाण है पर विदेशी विचारधारा के भारतीय प्रवर्तक तो भेद पहले दिखाते हैं पर एकता की बात करते हैं।  पहले वैमनस्य बढ़ाकर फिर शांति का जूलस निकालते हैं।
                              भारतीय अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार तो माया की भारी कृपा मिलने पर मनुष्य को अल्प कृपा वाले की मदद या परमात्मा के नाम पर  दान करना चाहिये। विदेशी विचाराधारा के प्रवर्तक तो इस बार पर ही खफा होते है कि एक पर माया की कृपा ज्यादा तो दूसरे पर कम क्यों है? उनके मतानुसार दोनों के बीच आर्थिक समानाता लाने का प्रयास राज्य प्रबंध तंत्र एक से छीनकर दूसरे को करे। माया की अल्प कृपा वाले ज्ञान साधक के मन में अधिक कृपा वाले के प्रति कोई दुर्भाव नहीं होता पर देशी विचारक इसे संतोष तो विदेशी विचारक इसे चेतना की कमी बताते हैं।  देशी विचारक मानते हैं कि मनुष्य अगर स्वयं शांत हो तभी उसे सुख मिल सकता है पर विदेशी विचाकर मानते हैं कि मनुष्य सुखी हो तभी देश में शांति रह सकती है।
                              इस तरह हमार देश विदेशी विचारधारा के विद्वानों की राह पर अभी तक चलता आया है इसलिये यहां नारकीय वातावरण बना है। श्रीमद्भागवत् गीता में मनुष्य जीवन के लिये जिन सहज सिद्धांतों का वर्णन किया गया है अगर उन पर अमल किया जाये तो भारत में समाजवादी स्वर्ग बन जायेगा।
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