Wednesday, December 25, 2013

आम आदमी और सामान्य मनुष्य-हिन्दी हास्य कविता (aam admi aur samanya manushya-hindi hasya kavita or hindi comedy poem)



बहुत दिनों बाद आया फंदेबाज
कहने लगा
‘‘देखो मैं इतने दिन से नहीं आया,
तुम्हारी हास्य कवितायें बहते नहीं दिखीं
पड़ गयी शब्दों की खेत परं अकाल की छाया,
आम आदमी के दर्द पर लिखने का
दावा करते हो,
हास्य कवि होने का दिखावा करते हो,
मेरे बिना तुम्हें क्या हो गया,
तुम्हारा कवि मन कहां खो गया,
अरे तुम इस रोते समाज को
क्यों नही हंसाते हो,
एकाकीपन में
अपनी कलाम क्यों दबाते हो।’’
सुनकर हंसे दीपक बापू
फिर बोले-‘‘
यह सच है तुम्हारे न आने पर
हम हास्य कविता नहीं लिख पाये,
मगर ज्यादा न इतराओ
हम आम आदमी शब्द के
खास हो जाने की बात नहीं समझ पाये,
अब तो खुद को आम आदमी कहने में
हिचकिचाहट होने लगी है,
हो गयी यह पदवी खास
हमारे दावे पर भीड़ हंसने लगी है,
हम ठहरे सामान्य मनुष्य
प्रचार नहीं मिलता है,
आम आदमी कहने से कोई
बौखला न जाये
इसलिये कंप्यूटर पर हाथ हिलता है,
वैसे तुम अच्छा आये
सामान्य मनुष्य शब्द हमारे दिमाग में आ गया
इसलिये तुम बहुत भाये,
तुमने आम आदमी की जगह
सामान्य मनुष्य शब्द पैदा किया
सच है कोई नयी हास्य कविता
पैदा होती है
जब तुम मिलने आते हो।’’


लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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Saturday, December 07, 2013

भलाई और मलाई-हिन्दी कविता(bhalai aur malai-hindi poem's)



असुरों के अपराध पर करते हैं बहस
महिलाओं के हक हड़पने पर
समाज को कोसते हैं,
देवताओं पर लगाते पुरुष होने का आरोप
तोहमत कानून पर थोपते हैं।
कहें दीपक बापू अंग्रेजों ने समाज बांटा,
बुद्धिजीवी लगा रहे हर टुकड़े
बेकार के तर्कों का कांटा,
कोई कर रहा बाल कल्याण,
कोई महिलाओं की रक्षा के लिये चला बाण,
कोई गरीब को अमीर बनाने में जुटा,
कोई बीमार के लिये हमदर्दी रहा लुटा,
हजारों हाथ उठे दिखते हैं
जमाने की भलाई के लिये
मलाई मिलने का मौका मिलते ही
कमजोरों की पीठ में छुरा घौंपते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Monday, November 11, 2013

उधार का गड्ढे में पांव-हिन्दी व्यंग्य कविता (udhar ke gaddhe mein paanv-hindi vyangya kavita)



खूबसूरत चेहरे देखकर
यूं ही ताली बजाये जाते हो,
उनकी अदाऐं देखकर
मन ही मन ललचाये जाते हो।
शायद तुम नहीं जानते
बेची है बुतों ने अपनी तकदीर
बाज़ार के सौदागरों के हाथ
जिनके इशारे पर
शयों के पीछे तुम दौड़ाये जाते हो।
कहें दीपक बापू
पर्दे पर चलते अफसानों में
क्यों आंखें गड़ाये बैठे हो
अपने दिल बहलाने का
सामान पाने के लिये क्यों एैंठे हो
नकद नहीं जेब में
उधार के गड्ढे में
अपना पांव क्यों फंसाये जाते हो।
......................................


लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Monday, October 28, 2013

हिन्दी-क्षणिकायें (two hindi short poem's)




आओ विकास के मसले पर बहस करे,
गड्ढों में सड़क है
अस्पतालों में दवायें नहीं तो क्या
चिकित्सक तो हैं,
बदबूदार है तो क्या
पानी मिलता तो है,
सच्चाई हमेशा कड़वी रहेगी
आओ कुछ देर के लिये
अपनी जुबान से
अपने दिमाग में कुछ सपने भरें।
---------------
अंधे हाथी को पकड़कर कर
गलतबयानी करते
तो समझ में आता है,
मगर अब तो आंखें वाले भी
अपने अपने नजरिये से देखने लगे हैं,
दिमाग से नहीं रहा जुबां का रिश्ता
आंखों में तारों की जगह पत्थर लगे है।
--------------


लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Wednesday, October 16, 2013

ज्ञान बघारना एक सरल विषय-हिन्दी व्यंग्य (gyan bagharna ek saral vishay-hindi vyangya lekh,hindi satire article)



                        परोपदेशे कुशल बहुतेरे’, यह उक्ति बहुत प्रसिद्धि है।  इस उक्ति से हमारे देश के जनसामान्य का इसमें पूरा चरित्र समझा जा सकता है। श्रीमद्भागवत गीता हमारा विश्व प्रसिद्ध ज्ञान और विज्ञान का  ग्रंथ है। उसके अनेक अंश हमारे यहां सुनाकर लोग यह प्रमाणित करते हैं कि वह वाकई बहुत बड़े विद्वान है।  इसके संदेशों को धारण कर उसके आधार पर चलने और समाज को देखने वाले नगण्य ही हैं।  इतना जरूरी है कि लोग इसके आधार पर अपना ज्ञान बघारते हुए तनिक भी नहीं चूकते।
                        उस दिन एक सज्जन ने दीपक बापू से  कहा-‘‘देखिये, सभी जानते हैं कि काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार में लिप्तता अत्यंत खतरनाक होती है पर कोई इसे समझता नहीं है।’’
                        दीपक बापू ने उन पर प्रश्नवाचक दृष्टि डालते हुए कहा-‘‘आप समझते हैं?समझते हैं तो क्या उसे धारण करते हैं?’’
                        वह सज्जन बोले-‘‘नहीं! यह मुश्किल लगता है।
                        दीपक बापू ने कहा-‘‘फिर कहने से क्या फायदा? दूसरे  ज्ञान धारण नहीं करते, पर यह भी तो समझना चाहिये कि हम भी नहीं करते।
                        सज्जन बोले-‘‘बात कहने में तो आती है न!
                        दीपक बापू ने कहा-‘‘यह कहने वाली नहीं वरन् व्यर्थ रुदन करने वाली बात है। इससे अच्छा तो यह है कि आप और हम मिलकर महंगाई, भ्रष्टाचार और बीमारियों जैसे ज्वलंत विषयों पर अपनी भड़ास निकालें।’’
                        सज्जन अपना सिर खुजलाने लगे-‘‘आपकी बात समझा नहीं। मेरा विचार था कि अपने दिल का बोझ हल्का करूं और आप तो सुबह ही दर्दनाक विषयों पर चर्चा करने की प्रेरणा देने लगे।’’
                        दीपक बापू ने कहा-‘‘यह विषय कम दर्दनाक है बनिस्पत उस ज्ञान चर्चा के जिस पर हम चलते नहीं। उस पर बात करने से हमें खीज होती है।’’
                        सज्जन ने कहा-‘‘याद आया, आप तो व्यंग्यकार हैं! अच्छा व्यंग्य किया। दिल खुश कर दिया आपने।
                        आत्मप्रशंसा सभी को अच्छी लगती है पर अति सर्वदा वर्जियते! इसलिये दीपक बापू उस वार्तालाप से बाहर होकर अपने कदम दूसरी तरफ बढ़ाते हुए चल दिये।
                        भारत में आधुनिक लोकतंत्र, शिक्षा तथा जीवन शैली ने सभी को मुखर कर दिया है। एक फिल्म का गाने के कुछ शब्द याद आते हैं गाना आये या नहीं पर गाना चाहिये  हमारे यहां राजनीति शास्त्र का ज्ञान न हो तो भी राजनीति की जा सकती है। पैसा, पद और पराक्रम हो तो कोई भी राजकीय पद प्राप्त किया जा सकता है पर कर्तव्य निर्वाह करने कितने लोग सक्षम दिखते हैं वह भी देखने वाली बात है।  ज्ञान पढ़ा हो पर उसे धारण किये ही लोगों की भीड़ जुटाकर अपने आपको संत साबित किया जा सकता है।  आजकल तो कर्ज व्यवस्था ऐसी हो गयी है कि अपने पास धन कम हो तो भी क्या अमीरों जैसी सुविधायें कर्ज लेकर भी प्राप्त की जा सकती हैं।  अनेक भवन व्यवसायी फोन कर लोगों को बताते हैं कि वह कर्ज लेकर मकान खरीद सकते हैं। जिन लोगों ने कर्ज लेकर सामान बनाया है वह दूसरों को कर्ज लेकर घी पियो के आधार अपना ज्ञान बांटते हैं। प्रचार पुरुषों की दृष्टि में समाज विकास कर रहा है पर ज्ञान साधक आर्थिक, सामाजिक, वैचारिक, बौद्धिक तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से अस्थिर लोगों के समूह को चूहों की तरह इधर से उधर भागते देख रहे हैं।
                        आजकल चिकित्सा पर ज्ञान बघारने के लिये उसका शास्त्र पढ़ने की बजाय अपने अंदर एक बीमारी पालना भर जरूरी  है।  एक चिकित्सक के पास चक्कर लगाते रहो। ठीक हो या न हो पर उसके इलाज से चाहे जहां अपना ज्ञान बघारने लगो। हमारे यहां पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर ज्ञान बघारने वालों की बहुत बड़ी तादाद है।  जिसने एक बार शादी कर ली वह दूसरों को बताता है कि इसमें कौन कौनसी परंपरायें हैं जिनके निर्वाह से धार्मिक संस्कार पूरा होता है।  कौनसी जगह विवाह कार्यक्रम के लिये  ठीक है। कौनसा हलवाई सबसे अच्छा और स्वादिष्ट वैवाहिक भोजन बनाता है।
                        बात निकलती है तो कहां से कहां पहुंच जाती है।  हम बात कर रहे थे ज्ञान बघारने की।  जब तक देह है उसके साथ वह सब बुराईयां जुड़ी रहेंगी जिनसे बचने की बात की जाती है। मुख्य मुद्दा आत्मनियंत्रण से है जो कि स्वयं को ही अपनानी होती है।  दूसरा कैसा है, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हम कैसे हैं? होता इसका उल्टा है।  लोग दूसरों के दोष देखते हैं। उससे भी ज्यादा कष्ट वह अपने दोष छिपाने के लिये उठाते हैं।  उससे भी ज्यादा बुरा यह कि लोग अपने आपसे अपने दोष छिपाते हैं। आत्ममंथन की प्रक्रिया से बचना सभी को सुविधाजनक लगता है।
                        दूसरे की लकीर को छोटा दिखाने के लिये अपनी बड़ी लकीर खींचने की बजाय लोग अपनी  थूक से दूसरे की लकीर मिटाने लगते हैं। अपने अंदर कोई सद्गुण पैदा करने की बजाय दूसरे की निंदा कर अपनी झेंप मिटाते हैं।  आत्मप्रवंचना में समय बरबाद करते हैं।  कोई अच्छा काम करना लोगों के लिये संभव नहीं होता तो वह ज्ञान बघारते हैं।  ऐसा ज्ञान जो हर कोई जानता है। उस पर चलता कौन है यह अलग से विचार का विषय है।

लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Tuesday, October 08, 2013

जश्न मनाने के खतरे-हिन्दी व्यंग्य कविता(jashna manane ke khatre-hindi vyangya kavita)



दौलत का जश्न जो सरेआम मनायेंगे
उनके लुंटने के खतरे कभी कम नहीं होंगे,
अपनी ताकत कमजोर पर जो  हमेशा दिखायेंगे,
उनकी हार  के खतरे कभी कम नहीं होंगे,
जिस्म की नुमाइश से जो ज़माने के जज़्बात भड़कायेंगे
उन पर घाव होने के खतरे कभी कम नहीं होंगे।
कहें दीपक बापू
साहुकारों की इज्जत सामान दिखाने से नहीं
दरियादिली  से बढ़ती है,
बाहुबल से बेबसों को बचाने वालों पर
दुनियां मरती है,
नंगा जिस्म कभी सुहाता नहीं
कपड़ो से ही उसकी शान बढ़ती है,
अपनी अपनी सोच है अपना अपना नजरिया
बचते बचाते चलो,
हादसे बहुत होने लगे हैं
किसी के सहलाने से अपने घावों के दर्द कम नहीं होंगे
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Sunday, September 29, 2013

शराब चीज ही ऐसी है-हिन्दी व्यंग्य कविता (sharab cheej hee aise hai-hindi vyangya kavita, A satire poem on wine)




हर रात की तरह आज भी
महफिलों में जाम छलकेंगे,
कुछ लोग मदहोशी में खामोश होंगे,
कुछ अपना मुद्दा उठाकर भड़केंगे,
जाम के पैमाने का हिसाब पीने वाले नहीं रखते
चढ़ गया नशा उनके दिमाग भी बहकेंगे।
कहें दीपक बापू
कमबख्त! शराब चीज क्या है
कोई समझ नहीं पाया,
जिसने नहीं पी वह रहा उदास
जिसने पी वह भी अपने दर्द का
पक्का इलाज नहीं कर पाया,
शराब न खुशी बढ़ाती है,
न गम कभी घटाती है,
छोड़ गयी हमें फिर भी उसके कायल हैं,
अपने घाव कभी नहीं भूलते, ऐसे हम भी घायल हैं,
सच यह है कि शराब का नशा एक भ्रम है,
नशा हो या न हो
इंसान के जज़्बातों के बहने का तय क्रम है,
पीकर कोई अपने नरक में
स्वर्ग के अहसास करे यह संभव है
मगर जिसने नहीं पी
वह भी नरक के अहसास भुला नहीं पाते,
शराब का तो बस नाम है
इंसान अपने जज़्बातों में यूं ही बह जाते,
अपने दर्द का इलाज इंसान क्या करेगा
अपने घाव की समझ नहीं दवा क्या भरेगा,
अलबत्ता, रात में खामोशी बढ़ती जायेगी
बस, पीने वाले ही नशे में नहाकर गरजेंगे।
--------------

लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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Wednesday, September 18, 2013

खबर और आग-हिन्दी व्यंग्य कविता(khabar aur aag-hindi vyangya kavita)



सामने पर्दे पर खबरची टीवी पर
खबरें ही खबरें चल रही हैं,
देखते रहो तो मानस रोऐगा
यह मानकर गोया कि पूरी दुनियां में
आग ही आग जल रही है,
अरे, जल्दी रात को सो जाओ
कुछ खूबसूरत कुछ डरावने सपने
आने को तैयार खड़े हैं
पथराई आंखें खोले बैठे हो
जिनमें नींद करवट बदल रही है।
कहें दीपक बापू
खबरे पहले से आयोजित,
बहसें हैं प्रायोजित,
कपड़े पहने घूमती नारियों की मर्यादा
कभी बाज़ार में बेचने की शय नहीं होती
पर्दे की नायिकायें बनती वही
जो कपड़ों से बाहर झांकते अंगों वाली
तस्वीर में ढल रही हैं,
खबर दर खबर से ज़माना सुधर जायेगा
यह आसरा देते प्रचार के प्रबंधक,
जिनकी नौकरी है बाज़ार के सौदागरों के यहां बंधक,
भूखे को रोटी देने की बजाय
वह उसकी खबर पकायेंगे,
शीतल हवा क्या वह बहायेंगे,
जिनके खाने की  पुड़ी
देशी घी से भरी कड़ाई में
आग पर तल रही है।
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Wednesday, September 11, 2013

हिन्दी दिवस पर हास्य कविता-कार्यक्रमों की भीड़ में अकेली कविता(hindi satire poem on hindi day,hindi diwas par hasya kavita)



रास्ते में मिला फंदेबाज और बोला
‘‘दीपक बापू, आप बरसों से
हिन्दी में लिखते हो,
फिर भी फ्लाप दिखते हो,
अब हिन्दी दिवस आया है
कोई कार्यक्रम कर
अपनी पहचान बढ़ाओ,
लोग तुम्हें ऐसे ही पढ़ें
यह तुम भूल जाओ,
आजकल प्रचार का जमाना है,
हाथ पांव मारो अगर नाम कमाना है,
तुम भी करो स्थापित कवियों की चमचागिरी,
अपने से कमतर पर जमाओ नेतागिरी,
वरना लिखना छोड़ दो,
सन्यास से अपना नाता जोड़ लो।’’
सुनकर हंसे दीपक बापू
‘‘हिन्दी दिवस का प्रचार देखकर
तुम्हारा मन भी उछल रहा है,
अपने दोस्त को फ्लाप
दूसरों को हिट देखकर
तुम्हारा दिमाग जल रहा है,
लगता है तुमने ऐसे कार्यक्रमों
कभी गये नहीं हो,
इसलिये ऐसी सलाहें दे रहे हो
भले दोस्त नये नहीं हो,
हिन्दी दिवस पर लिखने के अलावा
हमें कुछ नहीं आता है,
ऐसे कार्यक्रमों में लेखन पर कम
नाश्ते और चाय के इंतजाम पर
ध्यान ज्यादा जाता है,
बाज़ार के इशारे पर नाचता है जमाना,
सौदागरों के रहम के बिना मुश्किल है कमाना,
अंग्रेजी के गुंलाम
हिन्दी से ही कमाते हैं,
यह अलग बात है कि
ज़माने से अलग दिखने के लिये
अंग्रेजी का रौब जमाते हैं,
सच यह है कि
हिन्दी कमाकर देने वाली भाषा है,
इसलिये भविष्य में भी विकास की आशा है,
चीजें बनायें अंग्रेजी जानने वाले
मगर बेचने के लिये हिन्दी में
पापड़ बेलना पड़ते हैं,
यह अलग बात है कि
हिन्दी लेखक होने पर
उपेक्षा के थपेड़े झेलना पड़ते हैं,
कार्यक्रमों की भीड़ में जाकर
हमारी लिखी रचना क्या करेगी,
अकेली आहें भरेगी,
इसलिये तुम्हारी सलाह नहीं मान सकते
भले ही तुम दोस्ती से मुंह मोड़ लो।


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Thursday, September 05, 2013

जिंदगी में बेख़ौफ़ डटे हैं-हिंदी शायरी (zindagi mein bekhauf date hain-hindi shayri or poem)



सिर पर ताज सजे
यह ख्वाहिश कभी पाली नहीं
क्योंकि जिनके आगे सिर झुके हैं
उनके सिर कटे भी हैं,
रहने के लिये कोई राजमहल हो
इसका सपना कभी देखा नहीं
क्योंकि जिन्होंने ऐशो-ओ-आराम में
बितायी जिंदगी
उनके पांव जेलों में पहुंचकर फटे भी हैं।
कहें दीपक बापू
किसी ने सच कहा है
दाल रोटी खाओ
प्रभु के गुण गाओ
जिनकी चाल ने दिलाया उनको नाम,
चरित्र के लेकर हुए वही बदनाम,
पैसा, पद और प्रतिष्ठा कमाने के लिये लोग
पाखंड का रास्ता सरल मानते हैं,
अपने ही जाल में कभी फंसेंगे
यह कभी नहीं जानते हैं,
ख्वाब है सभी के आकाश में उड़ने के,
सपने हैं अपना नाम सितारों से जुड़ने के,
सभी के हिस्से में आकाश नहीं आता,
जिनके आया
गिरते हैं वह भी जमीन पर
एक दांत भी उनका सलामत  नहीं आता,
अपनी बात कहते रहें,
दर्द अपना यूं ही सहते रहें,
कोई न सुनता है न पहचानता है,
कम अक्लों से बहस करने से बचते हैं
क्योंकि कोई हमें शायर नहीं मानता है,
अपनी कही खुद ही सुनते हैं,
ऊंचाई पर चढ़ने के ख्वाब कभी नहंी बुनते हैं,
इसलिये जिंदगी की जंग में बेखौफ डटे हैं। 

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