Saturday, August 20, 2011

अण्णा हजारे (अन्ना हजारे) के अनशन ने इंटरनेट पर भ्रष्टाचार विरोधी सामग्री की खोज बढ़ाई-हिन्दी लेख (anna hazare ka anshan, internet and search of anti corruption movement word)

        अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और जनलोकपाल की स्थापना के अभियान को प्रचार माध्यमों ने देश में चर्चा का विषय बना दिया है। यह तो पता नहीं कि इस आंदोलन की चरम परिणति किस तरह होगी पर इतना तय है कि इससे देश के लोगों पर इतना प्रभाव हुआ है कि इसकी चर्चा हर कहीं चल रही है। टीवी चैनलों पर भारी भरकम पेशेवर विद्वान निरंतर अपने विचार प्रकट कर रहे हैं तो समाचार पत्रों में उनके ही लेख छाये हैं। हमारी दिलचस्पी भी इस आंदोलन के भ्रष्टाचार विरोधी विषय में है पर इतर गतिविधियों पर भी बराबर नज़र रहती है। इसके आधार पर कह सकते हैं कि भ्रष्टाचार विरोध एक नारा बन गया है जिससे इंटरनेटर पर संभवत सबसे अधिक खोजा जा रहा है। भ्रष्टाचार विरोध शब्द अन्ना हजारे से अधिक सर्च इंजिनों में ढूंढा जा रहा है।
        इसका आभास अपने ब्लाग दीपक बापू कहिन पर लगातार दो दिन एक हजार से अधिक पाठक/पाठ पठन संख्या होने पर हुआ। हालांकि अन्य ब्लाग हिन्दी पत्रिका को भी यह श्रेय हिन्दी दिवस के अवसर पर मिल चुका है। आज भी ऐसा लग रहा है कि दीपक बापू कहिन एक हजार से अधिक का आंकड़ा पार करेगा। ऐसे नहीं है कि भ्रष्टाचार पर लिखी गयी हास्य कवितायें या लेख पहले पाठक नहीं जुटा रहे थे। दरअसल उस समय वह पाठ अन्य शब्दों से सर्च इंजिनों पर पढ़े जा रहे थे। भ्रष्टाचार शब्द से भी पढ़े गये पर उनकी संख्या इतनी नहंी थी जितनी आजकल दिख रही है।
       इसका अभिप्राय यह है कि अन्ना हजारे साहब का अनशन, भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन तथा जनलोकपाल की मांग से कहीं न कहीं टीवी चैनलों तथा समाचार पत्रों के अपने विज्ञापन के साथ प्रसारण तथा प्रकाशन के लिये एक महत्वपूर्ण रुचिकर सामग्री मिल रही है। इतना ही नहीं पिछले दिनों ऐसा लग रहा था कि इंटरनेट का प्रभाव कम हो सकता है क्योंकि इस पर परंपरागत प्रचार माध्यमों जैसी सामग्री प्रस्तुत हो रही है। इधर भारत ही नहीं बल्कि इंटरनेट को सामूहिक अभियानों और आंदोलनों के लिये प्रभावी बताकर यह साबित किया जा रहा है कि उससे जुड़ा रहना बेहतर है। लगता है कि कहीं न कहीं टेलीफोन कंपनियां अपने ग्राहक बनाये लगने के लिये ऐसे अभियानों को प्रोत्साहित कर रही हैं। संभव है प्रत्यक्ष नहीं तो अप्रत्यक्ष विनिवेश भी करती हों। तय बात है कि इससे टेलीफोन कंपनियों को ही सहारा मिलना है। पहले ब्लाग, फिर ट्विटर और अब फेसबुक जनचर्चा के लिये महान कार्य करते दिखाये जा रहे हैं। पहले फिल्मी अभिनेताओं, अभिनेत्रियों तथा अन्य अन्य प्रतिष्ठित लोगों के ब्लाग चर्चित कर इंटरनेट की महिमा बतायी जाती थी आजकल ट्विटर और फेसबुक पर उनके जारी संदेश टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में प्रचारित किये जाते हैं। तय बात है कि किसी खास आदमी की आम बात को जोरदार प्रचार होता है पर आम आदमी की खास बात को भी छोड़ दिया जाता है। अन्ना हजारे के आंदोलन से अंततः कहीं न कहीं आजकल के प्रचार माध्यमों के साथ ही टेलीफोन कंपनियों को भी लाभ हो रहा है। लोगों से एसएमएस भी कराये जा रहे हैं और भावुक लोग ऐसा कर भी रहे हैं। हमें इन चीजों से कोई लेना देना नहीं है पर इतना जरूर कह सकते हैं कि प्रचार माध्यमों के स्वामी इस आंदोलन से लाभ उठा रहे हैं शायद यही कारण है कि इस आंदोलन के विरोधी इससे जुड़े आर्थिक स्तोत्रों पर संदेह करते हैं क्योंकि अंतत उनके माध्यम से एक बहुत बड़ी राशि समाज सेवकों के पास चाहे वह आंदोलनकारी हों या उनके प्रबंधक-जाती है।
            अन्ना साहेब बुजुर्ग हैं और इस गैस विकार पैदा करने वाले मौसम में उनका इस तरह अनशन पर बैठना चिंता का विषय है। एक बात साफ है कि उन्होंने देश के जनमानस को आंदोलित किया है पर भ्रष्टाचार ऐसी बीमारी है जिसका हल लोगों को स्वयं भी ढूंढना चाहिए। भ्रष्टाचार का कारण लालच और लोभ है। एक लालची अधिक चाहता है इसलिये वह दूसरे लालची को इसलिये पैसा देता है ताकि वह उसकी सहायता करे। फिर जिस तरह आज के प्रचार माध्यमों का रवैया है वह उपभोग संस्कृति को प्रोत्साहित करते हैं और खास लोगों की  अभिव्यक्ति को ही आवाज देते हैं और आम आदमी उनके लिये अत्यंत निरीह है। यही कारण है कि हर आम खास बनना चाहता है। इस लोभ के चलते कोई भी किसी मार्ग पर चला जाता है यह जाने कि वह अच्छा है कि नहीं। अपनी जरूरतें बढ़ा दी गयी हैं जिससे लोग धन पाने के अलावा कोई अन्य लक्ष्य जीवन में रखना तो दूर सोचते तक भी नहीं है। दीपक बापू कहिन ही नहीं अन्य ब्लाग पर भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध लिखी सामग्री इंटरनेट पर ढूंढती दिखी। तब यह लिखने का विचार आया कि अन्ना हजारे के आंदोलन से ‘भ्रष्टाचार का विषय’ कितना चर्चित हुआ है यह अनुभव पाठकों तथा ब्लाग मित्रों से बांटा जाये। आखिरी बात यह है कि व्यंजना विधा में भ्रष्टाचार को लक्ष्य कर लिखी गयी हमारी एक कविता का उपयोग कहीं न कहीं अन्ना साहेब के प्रचार में दिखा। व्यंजना विधा में लिखी गयी बात बहुत कम समझ में आती है पर अन्ना साहेब के अंादोलन में विलक्षण प्रतिभाशाली लोग भी हैं यह आज प्रचार माध्यम बता रहे थे। इसका मतलब है कि उनमें से किसी एक ने पढ़ा है और उसका उपयोग अपने ढंग से किया है। यह अलग बात है कि हमें वह कविता पुनः देखने के लिये बीस ब्लागों का अवलोकन करना पड़ेगा। हमने यह कविता तब लिखी थी जब यह अनशन होने की बात भी नहीं थी।
दीपक बापू कहिन में पढ़े गये पाठों का विवरण इस प्रकार है
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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Wednesday, August 10, 2011

नाकामी की सफाई-हिन्दी कविता (nakami ki safai-hindi kavita)

पेट की भूख इंसान को शैतान बना देती है
भूखे की लाचारी गद्दारी का पैगाम थमा देती है।
पेड़ पत्थर और पहाड़ों के देश की भक्ति न सिखाओ,
महंगाई हर शहरी की कमर तोड़कर जमा देती है।
वातानुकूलित कमरों में बैठकर चर्चा आसान है,
ऊबड़ खाबड़ सड़क पर धूप केवल पसीना देती है।
रोते हुए मुद्दों पर मसखरे दे रहे बड़े बड़े बयान
उनकी कुर्सियां ही बैठकर रोटी और दारु कमा देती है।
कहें दीपक बापू, मेहनतकशों के हिमायती बहुत हैं,
भलाई की दलाली उनके बड़े बड़े महल बना देती है।
लुटी भीड़ को देते भाषण वह रौशनदानों से खड़े होकर
सच से छिपने की कोशिश भी उनको वीर बना देती है।
भूख मिटा नहीं सकते, प्यास बुझा नहीं सकते,
नाकामी पर जोरदार सफाई, उन्हें सफल बना देती है।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
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Friday, August 05, 2011

दौलत की धारा-हिन्दी शायरी (daulat ki dhara-hindi shayri)

उनकी आँखों में वफा का समंदर
इस कदर बहते देखा है
लगता है कि
सारे जहान के लोगों की प्यास बुझ जाएगी,
जुबान से मीठे शब्दों की लहर
इतनी तेज उठती है
लगता है कि
जमाने भर के लोगों को
गर्मी में भी शीतलता दिलाएगी।
मगर ज़मीन पर कभी
एक बूंद भी वफा की
टपकती नज़र नहीं आती,
गरीब की भूख और प्यास
रोज उम्मीद मे भंवर में फंस जाती,
भले दौलत की हर धारा
जमाने की ठेकेदारों के घर में बहती दिख जाएगी।
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