Wednesday, August 10, 2011

नाकामी की सफाई-हिन्दी कविता (nakami ki safai-hindi kavita)

पेट की भूख इंसान को शैतान बना देती है
भूखे की लाचारी गद्दारी का पैगाम थमा देती है।
पेड़ पत्थर और पहाड़ों के देश की भक्ति न सिखाओ,
महंगाई हर शहरी की कमर तोड़कर जमा देती है।
वातानुकूलित कमरों में बैठकर चर्चा आसान है,
ऊबड़ खाबड़ सड़क पर धूप केवल पसीना देती है।
रोते हुए मुद्दों पर मसखरे दे रहे बड़े बड़े बयान
उनकी कुर्सियां ही बैठकर रोटी और दारु कमा देती है।
कहें दीपक बापू, मेहनतकशों के हिमायती बहुत हैं,
भलाई की दलाली उनके बड़े बड़े महल बना देती है।
लुटी भीड़ को देते भाषण वह रौशनदानों से खड़े होकर
सच से छिपने की कोशिश भी उनको वीर बना देती है।
भूख मिटा नहीं सकते, प्यास बुझा नहीं सकते,
नाकामी पर जोरदार सफाई, उन्हें सफल बना देती है।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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