Sunday, December 28, 2014

संत का फिल्म में नायक की भूमिका निभाना गलत नहीं-हिन्दी चिंत्तन लेख(film messenger of god and india religion,sant and actor-hindi article)



            आजकल एक धार्मिक संत की फिल्म भगवान का संदेश वाहक’ (messanger of god)नामक फिल्म की चर्चा है। इस फिल्म मेें नायक, गायक, लेखक, संगीतज्ञ तथा निर्देशक वही संत है जिसके पांच करोड़ से अधिक भक्त हैं। इसी चर्चा के बीच एक मुंबईया फिल्म पीके का भी नाम चल रहा है।  इसमें भारतीय धर्म पर व्यंग्य कसे गये है। इस फिल्म में नायक की भूमिका निभाने वाला एक चाकलेटी चेहरे वाला अभिनेता है। आयु से अधेड़ कहलाने योग्य उस अभिनेता के अभिनय की चर्चा अधिक करना व्यर्थ है।  वैसे भी हमारी मुंबईया फिल्मों में पचास के पार हो चुके अधेड़ अभिनेता नायकत्व पाकर षोडषवषीर्य समाज में सम्मानित हो रहे हैं।  यह सम्मान मजबूरी भी हो सकती है क्योंकि हमारे देश में खर्च करने के लिये पैसा और समय बहुत हो गया है।  हम फिल्म देखने के बहुत शौकीन रहे हैं पर दो सौ रुपये की टिकट और ढाई घंटे का समय खर्च कर हम फिल्म नहीं देखना चाहते।
            अभी एक फिल्म आई थी। ओ माई गॉड। कटाक्ष उसमें भी थे पर उसमें जिस तरह श्रीमद्भागवत गीता का संदेश स्थापित हुआ था उससे हमें प्रसन्नता हुई।  पीके फिल्म के विज्ञापन में तमाम तरह के कटाक्ष है जो प्रभावी है शायद दर्शक इसी वजह से जा रहे हैं।  हमने फिल्म देखी नहीं है पर पता चला कि इसमें एक भारतीय हिन्दू लड़की का पाकिस्तान के मुस्लिम लड़के से प्यार दिखाया गया है। विज्ञापन में इसका उल्लेख नहीं है शायद यही कारण है कि उसे दर्शक मिल गये। इस फिल्म का अंत हिन्दू हृदयों को पसंद नहीं आयेगा पर तब तक देर हो जाती है।  पैसे और समय खर्च हो जाता है उसके बाद अंत से नाराजगी जताने से कोई लाभ नहीं है। इस फिल्म में मंदिर पर दूध बहाने पर किया गया व्यंग्य वैसा ही है जैसा ओ माई गॉड में था पर उसमें श्रीमद्भागवत गीता के लिये सकारात्मक भाव था इसलिये धार्मिक संतुलन था जबकि फिल्म में एक भारतीय धर्म पर कटाक्ष है फिर समाज पर इकतरफा प्रहार भी है।  ऐसा मत देखने वालों की आधार पर बना है।
            बहरहाल हम हरियाणा के उस चर्चित संत की फिल्म की प्रतीक्षा कर रहे हैं।  वह पहले ऐसे संत हैं जो नायक का अभिनय भी कर रहे हैं। प्रचार से मिली जानकारी के अनुसार जिन फिल्मों के स्टंट दृश्यों के लिये मुंबईया फिल्मों के अधेड़ अभिनेता अपने प्रतिरूप सहयोगियों का उपयोग करते हैं वह नायक संत ने स्वयं किये हैं। फिल्म मसाला कहानी की लगती है पर संत के अभिनेता होने की वजह से चर्चा में है। अनेक लोगों का यह मानना कि संत ऐसा न करें, हम इससे सहमत नहीं है।  हमारा मानना है कि हमारे देश के युवा संतों को अब फिल्म बनाना चाहिये। हमारे यहां जो मुंबईया फिल्म का स्थापित ढांचा है वह उत्तर भारत के हिन्दी युवाओं को प्रोत्साहित नहीं करता दूसरा यह कि वह अब जड़ हो गया है।  इसके अलावा उनके धन के साधन भी संदेहास्पद माने जाते हैं। यही कारण है कि वहां ऐसी फिल्में बनती हैं जिसमें विवाद होते हैं। फिल्म बनाने में पैसा लगता है। हमारे अनेक संतों के पास ढेर सारा पैसा है वह इसी तरह नायक का अभिनय कर फिल्म बनायें तो यकीनन ज्यादा लोकप्रिय हो जायेंगे।  संभव भारतीय धर्म का प्रचार भी बढ़े।  हम याद रखें कि हमारे देश में पाश्चात्य संस्कारों के प्रचार में फिल्मों का ही योगदान रहा है।
            हम जिन संत की बात कर रहे हैं उनका नाम हम जानते थे।  उन पर अनेक आरोप भी लग चुके हैं पर हमारे बौद्धिक दृष्टिपथ में वह फिल्म के प्रचार की वजह से ही आये हैं। उनके साक्षात्कार पहली बार सुने। यकीनन प्रभावी व्यक्तित्व के स्वामी हैं और ऐसे ही दस बीस संत प्रचार तंत्र पर छा जायें तो मुंबईया फिल्मों का हिन्दी दर्शकों पर कम हो सकेगा।    

लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
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Saturday, December 20, 2014

नयी रौशनी और पुराना दीया-हिन्दी कविता(nayi roshani aur purana deeya-hindi poem)



कभी ढेर सारे सोने का
लालच मेरे दिल में
चुभा रहे हो।

कभी अच्छे पकवान
आंखों के सामने सजाकर
जीभ लुभा रहे हो।

कहें दीपक बापू सच बताओ
नयी रौशनी का दिखाओगे
मेरे घर का जलता हुआ
पुराना दीया जो बुझा रहे हो।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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Sunday, December 14, 2014

समाधि विवाद पर पाश्चात्य विज्ञान के तर्क आवश्यक नहीं-हिन्दी चिंत्तन लेख(samadhi vivad par pashchatya vigyan ke tarka avashyak nahin-hindi thought article)




            एक प्रतिष्ठित संत की हृदयाघात से निधन हो गया।  उसे चिकित्सकों के पास ले जाया जिन्होंने उसे मृत घोषित कर दिया। जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे देश में धर्म के नाम एक ऐसी परंपरा भी है जिसमें भक्तों से दान लेकर आश्रम बनाकर स्वयंभू गुरु स्वयं को भगवान का रूप घोषित कर देते हैं।  अनेक गुरु तो ऐसे हैं कि राजाओं की तरह सिंहासन पर विराजकर भक्तों को प्रजा की तरह संबोधित करते हैं-इससे उनके अंदर की राजसी महत्वांकाक्षा शांत होती है यह अलग बात है कि वह सात्विक दिखने का प्रयास करते हैं। उनके शिष्य अपने गुरु के राजसी भाव को सात्विकता के वस्त्र प्रहनाने लगते हैं। हैरानी तब होती है जब त्रिगुणमयी माया के समंदर मे आकंठ डूबे इन लोगों को महान योगी कहा जाता है।
            बहरहाल इन कथित संत की देह को  शिष्यों ने बाद में शीत यंत्र में डाल दिया ताकि वह सड़े नहीं।  अब टीवी चैनलों पर पंद्रह दिन से बहस हो रही है।  हम जैसे योग तथा गीता साधकों के लिये खाली समय में टीवी देखने के अलावा कोई दूसरा स्वाभाविक कर्म नहीं होता।  इस पर बचपन से द्वंद्वों से भरे समाचार सुनने और पढ़ने की गंदी आदत इस काम के लिये हमेशा प्रेरित करती है।  अब मुश्किल यह है कि पतंजलि योग तथा श्रीमद्भागवद् गीता का अध्ययन कर लिया जिससे अध्यात्म और धर्म पर एक वैचारिक स्वरूप बना है। जब बाहर देखते हैं तो ऐसा लगता है कि धर्म के नाम पर इतना पाखंड है कि कहीं किसी ज्ञानी के होने की कल्पना करना भी कठिन है।  वेद, पुराण, रामायण, गीता और अन्य प्राचीन ग्रंथों के शब्द यहां इस विद्वानों के मुख इस तरह दोहराये जाते हैं कि हृदय प्रसन्न हो जाये पर बहुत जल्दी  सुखांत अनुभूति यह देखकर निराशा में बदल जाती है कि उनके अर्थों की व्याख्या एकदम सांसरिक विषयों से जुड़ी होती है।
            बहरहाल एक कथित धार्मिक बुद्धिमान ने यह दावा किया आज के वैज्ञानिक युग में संत के देहावसान को समाधि  नहीं माना जा सकता।  हमारा तर्क यह भी है कि इस देहावसान को समाधि न मानने के पीछे आज के विज्ञान का तर्क जरूरी नहीं है यह तो हम जैसा तुच्छ व्यक्ति पतंजलि योग के आधार पर वैसे ही कह सकता है यह समाधि नहीं है।  दरअसल इस तरह संत के शव को रखने के  पीछे संपत्ति का झगड़ा भी नहीं हो सकता पर गद्दी का विवाद जरूर है।  हर संत के देहावसान के बाद उसका प्रिय शिष्य गद्दी पर बैठता है।  अधिकतर संत  पहले ही इसे घोषित कर देते हैं। पहले भी अनेक संत हुए जिन्होंने अपने संगठन का उतराधिकारी घोषित किया।  यह पंरपरा सिख धर्म से ही आयी लगती है।  सिखों के गुरु हमेशा ही अपना उतराधिकारी घोषित कर देते जिससे बाद में कोई विवाद नहीं हुआ। दसवें गुरु श्रीगोविंद सिंह जी ने इस परंपरा को समाप्त करते हुए अपने पश्चात् शिष्यों के समक्ष गुरुग्रंथ साहिब को ही गुरु मानने का आदेश दिया।
            सिख आज भी गुरु ग्रंथ साहिब को ही गुरू मानकर चलते हैं। सिख धर्म को आजकल राजनीतिक कारणों से हिन्दू धर्म से अलग माना जाता है पर वास्तविकता यह है कि यह एक पंथ है जिसकी एक संगठन के रूप में स्थापना हुई थी। इस तरह सिख पंथ की संगठन के रूप में चलने की परंपरा देश में अन्य पंथों की प्रेरणा बनी।  हिन्दू धर्म के अंदर ही अनेक पंथ बन गये हैं जिनके गुरु अपने अंदर भगवान की तरह पुजने की इच्छा रखते हैं। यह गुरु धन, शिष्य तथा अन्य साधनों का संचय करते हैं। जो अपने जीवनकाल में अपना शिष्य घोषित करते हैं उनके संगठन बच जाते हैं जहां नहीं करे वह अनेक नाटक प्रारंभ हो जाते हैं। इन कथित संत की समाधि का नाटक भी इसी तरह का है। उनकी मृत्यु को समाधि बताने के पाखंड का अत पता नहीं कब होगा पर इसकी आड़ में भारतीय धर्म को बदनाम खूब किया जा रहा है। खासतौर से विज्ञान का नाम लेकर यह साबित किया जा रहा है कि हमारे अध्यात्मिक दर्शन में उसका कोई स्थान नहीं है। जबकि पंतजंलि योग के आधार पर कोई भी कह सकता है कि यह समाधि नहीं है। इस विषय में पाश्चात्य विज्ञान की आवश्यकता उन लोगों को है जो पतंजलि योग को विज्ञान नहीं मानते।
            हमारे यहां आजकल विज्ञान की बात इस तरह कही जाती है जैसे कि उसका हमारे देश में कभी अस्तित्व ही नहीं रहा। जबकि रामायण और महाभारत काल के दौर में जिस तरह के अस्त्रों शस्त्रों का प्रयोग युद्धों में हुआ उससे ऐसा लगता है कि उस समय भी विज्ञान का महत्व था।  कुछ लोग कह सकते हैं कि इससे विज्ञान के महत्व का पता नहीं चलता तो इसका जवाब यह है कि जिस पाश्चात्य विज्ञान के के आधार पर अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रंास का गुणगान करते हैं वह हथियारों की वजह से ही प्रमाणिक माना जाता है। वैसे भी श्रीमद्भागवत गीता में विज्ञान का महत्व ज्ञान के समकक्ष ही माना गया है।
लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
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Sunday, December 07, 2014

अर्थ अपराध की बढ़ती दर-हिन्दी कविता(arth aparadh ki dar-hindi kavita)



अर्थ की विकास दर
आकाश  में जितनी ऊंची होगी
ज़मीन पर अपराध का
पैमाना भी बढ़ जायेगा।

काले कारनामों से
तिजोरी भरने वाले सफेदपोश
जितने रचेंगे स्वांग
काली नीयत वाला भी
उतने ही वेश बनायेगा।

कहें दीपक बापू विकास पथ पर
चला रहे समाज
काले धन वाले,
ईमानदार घर बचाने के लिये
ढूंढ रहे मजबूत ताले,
पैसे और मदिरा के नशे में
डूबे लोगों की खबर नहीं
कौन कहां कहर बरपायेगा।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
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Friday, November 28, 2014

आदमी चीखकर शब्द बोलता है-हिन्दी कविता(aadmi cheekhkar shabd bolata hai-hindi poem)



अर्थ में शक्ति न हो तो
आदमी चीख कर
शब्द बोलता है।

आशंका  इस बात की
लोग ऊंचा ही सुनते हैं
आदमी चीखकर
शब्द बोलता है।

बुद्धि के दरवाजे से
लौट आती है सोच
विश्वास नहीं होता कि
बात का प्रभाव होगा कि नहीं
आदमी चीखकर शब्द बोलता है।

कहें दीपक बापू खामोश आईने में
जब आदमी देखता है
अपनी बदहाल सूरत,
ख्वाब में आती है
तब उसके सुंदर मूरत,
हताशा और तनाव
कभी मनोबल नहीं बढ़ाते
आत्मविश्वास की कमी से
आदमी चीखकर
शब्द बोलता है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Friday, November 21, 2014

स्वंय से छल-हिन्दी कविता(swayan se chhal-hindi poem)



 मिठास की चाहत में
मक्खियां ही नहीं
मनुष्य भी खिंचे चले आते हैं।

सूरज की रौशनी
जब तक रहती धरती पर
पंछी चहाचहाते
अंधियारे के आते ही
घौंसले में चले जाते हैं।

कहें दीपक बापू शिकायत बेकार है
ज़माने की बेवफाई की
झांके अपने दिल में
दूसरा क्या धोखा देगा
हम स्वयं से ही छले जाते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
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Monday, November 10, 2014

दो नंबर की कमाई की चमक-हिन्दी कविता(do nambar ki kamai ki chamak-hindi kavita)



आर्थिक विकास के साथ
पीछे से अपराधी
विनाश के दौर भी लाते हैं।

कोई नहीं जानता
धनी अपराध करके
या अपराधी व्यापार कर
माया के शिखर पर चढ़ जाते हैं,
माला पहन लेते फूलों की
उनके चेहरे और आचरण
नारों के बीच खो जाते हैं।

कहें दीपक बापू सत्य की शक्ति से
जीता जा सकता है संसार
मगर महल नहीं बना पाते,
एक नंबर की कमाई से
पेट भी  मुश्किल से भर पाते,
भ्रष्टाचार हो या बेईमान
आभूषण की तरह
दो नंबर की कमाई में
सितारे जोड़ जाते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
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Monday, November 03, 2014

वाघा सीमा पर हमला भारत के लिये चिंता का विषय-हिन्दी लेख(vagha seema par hamala chintajanak-hindi article,india pakistan beeting retreat-hindi editorial)



             13 अक्टुबर 2014 को हम स्वर्ण मंदिर की यात्रा पर गये थे तक सहयात्रियों के प्रभाव या दबाव के चलते हम भारत पाक सीमा यानि वाघा बार्डर भी गये। उस दिन भीड़ बहुत थी। थोड़ा बस ने विलंब से पहुंचाया तो हमें मैदान पर पहुंचने से पहले ही जगह भर जाने के कारण सुरक्षकर्मियों ने रोक लिया।  इसलिये झंडा उतरने का दृश्य अच्छी तरह नहीं देख पाये जिसके लिये लोग जाते हैं। अलबत्ता वहां लोगों की भीड़ देखकर आश्चर्य हुआ।  सुरक्षाबलों की चौकसी बहुत थी।  इस सीमा पर भारत पाकिस्तान के बीच तनाव नहीं रहता है। झंडा उतारने का प्रदर्शन अत्यंत सौहार्द से होता है-जिसका दृश्य हम टीवी पर अनेक बाद देख चुके हैं।  इधर अमृतसर 32 किलोमीटर उधर लाहौर 22 किलोमीटर दूर है।
            सीमा के उस पार आत्मघाती हमलावार के हमले में 65 नागरिक मारे गये तो अनेक हताहत भी हुए हैं।  पाकिस्तान चूंकि आतंकवाद का संरक्षक रहा है इसलिये उसके यहां इस तरह की वारदात होती रही है पर वाघा बार्डर पर हुई यह घटना भारत के लिये चेतावनी है-यह बात अनेक विशेषज्ञ मान रहे हैं।  अगर वह हमलावर कुछ मीटर आगे और कुछ समय पहले आने में सफल होता तो भारतीय पक्ष भी प्रभावित होता।  हमारे पास जानकारी के अधिक साधन तो नहीं है पर जिस तरह समाचार पत्र पत्रिकाओं तथा टीवी चैनल पर जानकारी मिलती है उसके आधार पर हमारा मानना है कि आतंकवाद की नयी घटना आतंकवाद का नया अवतार ही लगती है।  इसमें आम नागरिक तथा सैनिक मरे हैं इसलिये यह भी संदेह है कि पाकिस्तान के रणनीतिकारों का नया प्रयोग भी हो सकता है।  अक्सर पाकिस्तान के नेता अपने यहां के आतंकवाद का रोना रोते हैं पर हमारे जैसे लोग यह भी जानना चाहते हैं कि वहां इसका शिकार कौनसा क्षेत्र और कौनसे लोग होते हैं? क्या उसमें वह लोग तो नहीं होते जो पाकिस्तानी शासन पर स्थापित समाज के लिये अवांछनीय है। सिंध, ब्लूचिस्तान और सीमा प्रांत में पाकिस्तान के उस शासन का अधिक अस्तित्व नहीं है जिस पर वहां का पंजाबी समुदाय हावी है।  कभी शिया तो कभी अहमदिया, ईसाई और हिन्दू  समाज पर हमले होते हैं।  बलूची या पश्तो समाज भले ही धर्म के नाम पर पाकिस्तान के साथ लगते हैं पर हैं नहीं।  लाहौर के पास सीमा पर यह हमला भारी चिंता का विषय है।  हालांकि यह संदेह भी है कि कहीं पाकिस्तान की आतंकवाद के आरोपों से घिरी सरकारी तथा निजी संस्थाओं ने यह प्रयोग कर भारत के विरुद्ध अपने अभियान को नया स्वरूप देने के साथ ही प्रचार में उसका विश्व में राजनीतिकरण करने की कोई योजना बनाई हो।
            आखिरी बात यह कि पाकिस्तान ने पहले झंडा उतारने का प्रदर्शन तीन दिन टालने की बात कही थी पर उसने यह निर्णय वापस ले लिया।  भारतीय प्रचार माध्यम कह रहे थे कि वहां पाकिस्तानी दर्शक आये पर भारत से कोई नहीं गया।  इस पर हमारी सफाई ध्यान करें।  पाकिस्तान ने पहले कार्यक्रम स्थगित किया फिर बदल गया। वहां के लोगों को इसकी जानकारी मिल गयी होगी तो निजी तथा सरकारी परिवहन के संचालकों ने भी अपने वाहन रोके नहीं होंगे।  भारत में यह जानकारी देर से आयी होगी। आयी होगी तो यहां के परिवहन संचालकों ने वाहन नहीं चलाये होंगे या अमृतसर जाने वाले पर्यटकों को यह जानकारी नहीं मिली होगी।  वहां सार्वजनिक या निजी वाहन के जाना संभव नहीं है। इसलिये दर्शकों की अनुपस्थिति को कमजोरी के रूप में न लें।
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Sunday, October 26, 2014

पसीने बहाने वालों की पहचान-हिन्दी कविता(0asine bahane walon ki pahchan-hindi poem)



झौंपिड़यों के अंदर रखे
बर्तन पुराने और टूटे दिखते हैं
मगर वह झूठे नहीं है।

रहवासियों के बिस्तर और सामान
भले पुराने दिखते
उन्होंने कहीं से लूटे नहीं है।

कहें दीपक बापू परिश्रम का मोल
धनिक कम लगाते हैं,
अपने ही विरुद्ध
छोटे इंसानों के हृदय में
गुस्से की  आग भड़काते हैं,
पसीना बहाने वालो की
फटे और पुराने कपड़े से पहचान है,
काले चेहरे भी उनकी शान है,
अपनी छोटी खुशियों के पीछे
छिपा लेते अपनी स्थिति
मगर नीयत के झूठे नहीं है।
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Wednesday, October 22, 2014

फेसबुक पर बन रहा है नया समाज-हिन्दी लेख(fecebook par ban rahaa hai naya samar-hindi lekh)



            अमृतसर जाते हुए शताब्दी रेल में इस लेखक की मुलाकात एक युवक विपिन त्यागी से हुई थी जो फेसबुक पर सक्रिय हैं।  यह मजेदार बात है कि इस यात्रा में हमारे साथ एक मित्र थे जिनकी बेटी भी फेसबुक पर सक्रिय हैं।  यह लेखक जब आसपास सक्रिय युवक युवतियों पर दृष्टिपात करता है तो ऐसा लगता है कि नयी पीढ़ी से फेसबुक पर संपर्क रहकर रिश्ता जीवंत बनाया जा सकता है।  मित्र, रिश्तेदारों तथा सहकर्मियों के बच्चों से संपर्क बने रहना अपने आप में एक अजीब अनुभूति देता है।  अगर यह फेसबुक न हो तो ऐसे संबंधों में निरंतरता नहीं रहती जहां सदेह मिलना अनिवार्य हो। अभी तक यह कहा जाता है कि इंटरनेट सामाजिक संबंधों को ध्वस्त कर रहा है पर जिन लोगों को इंटरनेट पर कार्य का अनुभव हो जाये वह ऐसा कभी नहीं कहेंगें। हमें तो यह लग रहा है कि फेसबुक ऐसे संबंधों को जीवंतता प्रदान कर रहा है जो सदेह भेंट के अभाव में अपना अस्तित्व खो सकते हैं।
            विपिन त्यागी ने मेरे सामने ही फेसबुक पर मित्रवत निवेदन मोबाइल से दिया था। मैंने उनको बता दिया था कि इसे स्वीकार करने में कम से कम पांच दिन लगेंगे।  दिल्ली में हम दोनों अलग अलग हो गये थे। अगर यह फेसबुक की सुविधा न होती तो विपिन त्यागी और हमारा संवाद आगे संभव नहीं था। जिंदगी की अनेक यात्राओं में सैंकड़ों यात्री मिले मगर फिर संपर्क नहीं हुआ।  पिछली तीन चार यात्राओं में अनेक ऐसे  युवक युवतियों ने हमारे फेसबुक पर अपना संपर्क सूत्र स्थापित किया जो इंटरनेट के बिना संभव नहीं था।  उससे तो यह लगता है कि इंटरनेट जहां एक तरफ हानिप्रद है तो उसके लाभ भी हैं।  अगर सीमित रूप से श्रम, समय और धन व्यय हो तो यह साधन जरूर लाभप्रद है।  पागलों की तरह अगर इसका उपयोग किया जाये तो इसकी हानियां भी बहुत हैं।  खासतौर से मस्तिष्क में इसका जो दुष्प्रभाव होता है वह अधिक दिखता है।
            बहरहाल इतना तय है कि हम एक नये समाज की तरफ बढ़ रहे हैं।  विपिन त्यागी से तीन चार घंटे संपर्क रहा तो उनका व्यक्तित्व निच्छल और निर्मल दिखाई दिया।  हम अंतर्जाल को आभासी विश्व मानते हैं पर उनके साथ हुआ प्रत्यक्ष संपर्क एक सत्यता है।  अंतर्जाल पर अनेक ऐसे मित्र हैं जिनके नाम, काम और पते छद्म हैं।  इनमें कुछ नाम प्रमाणिक हैं जो कि एक सुखद अनुभूति प्रदान करते हैं। इस तरह अंतर्जाल पर आभासी तथा प्रमाणिक विश्व का अंतर्द्वंद्व हमेशा रहेगा। यह बात भी तय है कि आभास की बजाय  सत्य की अनुभूति अधिक सुखद लगती है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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Wednesday, October 15, 2014

जिंदगी का सफर-हिन्दी कविता(zindagi ka safar-hindi poem)




हंसते और सहमते हुए
जिंदगी का सफर
यूं ही कट ही जाता है।

कभी राह  मिलती
सीधी और सपाट
कभी आते गड्ढे
संभालते हुए अपने कदम
दिमाग का ध्यान
बाकी समस्याओं से
हट ही जाता है।

कहें दीपक बापू जिंदगी के रंग
बहुत सामने आते हैं,
आंखों के सामने दिखता
जो दिखता उस पर
रहती आंख
पिछला भूल जाते हैं,
चेहरा जो साथ हो
लगता मूल्यवान
जब छोड़ता है
उसका भाव घट ही जाता है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
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