दौलत की दौड़ में बदहवास है पूरा जमाना
या धोखा है हमारे नजरिये में
यह हमें भी पता नहीं है,
कभी लोगो की चाल पर
कभी अपने ख्याल पर
शक होता है
दुनियां चल रही अपने दस्तूर से दूर
सवाल उठाओ
जवाब में होता यही दावा
किसी की भी खता नहीं है।
कहें दीपक बापू
शैतान धरती के नीचे उगते हैं,
या आकाश से ज़मीन पर झुकते हैं,
सभी चेहरे सफेद दिखते हैं,
चमकते मुखौटे बाजार में बिकते हैं,
उंगली उठायें किसकी तरफ
सिलसिलेवार होते कसूर पर
इंसानियत की दलीलों से जहन्नुम में
जन्नत की तलाश करते लोगों की नज़र में
पहरेदार की तलाशी होना चाहिये पहले
कहीं अस्मत लुटी,
कहीं किस्मत की गर्दन घुटी,
लुटेरों की खता नही है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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