Saturday, December 29, 2012

सौदागरों के भौंपू-हिन्दी कविता(sadagaron ke bhaunpu&hindi kavita)


संवेदनाओं का यह व्यापार है
कहीं प्यार और कहीं खौफ
विज्ञापन के साथ बिक जाता है,
पर्दे पर जो चेहरा
बहाता है आंखों से आंसु
अगले पल ही हंसता दिख जाता है।
कहें दीपक बापू
बाज़ार के सौदागरों ने
लगा दिये हैं  भौंपू सभी जगह
बजाने वालों में होड़ होती है
कभी चिल्लाने की
कभी खिलखिलाने की
बटोर सके जो दौलत
वही मुकाबले में टिक पाता है।
हम तो ढूंढते हैं अपने अंदाज में खुशी
आंखें टीवी पर  लगाते जरूर
मगर दूर रखते दिल
मौका मिला तो हंस लिये
रोने से नहीं अपना नाता है।

लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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Sunday, December 23, 2012

सभी के दर्द की दवा-हिन्दी कविता (sabhi ke dard ki dawa-hindi kavita or poem)

एक कहानी बनी
पढ़ी लोगों ने
कई कहानियां बन गयी।
कहीं पात्रों के नाम बदले
तो कहीं हालात
लगती है हर कहानी नयी।
कहें दीपक बापू
इंसानों को मजा आता है
एक दूसरे की तकलीफ देखने में
सभी को नहीं मालुम
अंदर खुशी ढूंढने का तरीका
दूसरे के मुसीबत
सभी के दर्द की दवा यूं ही बन गयी।
लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
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Friday, November 30, 2012

चाणक्य नीति-अवसर आने पर ही कोयल की तरह बोलें (samaya hone par koyal kee tarah bolen-chankya neeti and chankya policy)

                        कहा जाता है कि मनुष्य को अपनी जीभ ही छाया में बैठने की सुविधा दिलवाती है  है तो कभी धूप में भटकने का मजबूर करती है।  मनुष्य का मन अत्यंत चंचल है और जीभ उसकी ऐसी अनुचर है जो बिना विचारे शब्दों का प्रवाह बाहर कर देती है।  मन और जीभ के बीच जो बुद्धि या विवेक तत्व है पर मनुष्य  मन उतावलनेपन की वजह से उपयोग नहीं करता। यही कारण है कि मनुष्य अनुकूल और प्रतिकूल समय की परवाह किये बिना बोलता है।  कभी सामर्थ्य से अधिक साहस तो कभी शक्ति से अधिक क्रोध प्रकट कर अनेक मनुष्य कष्ट उठाने के साथ ही कभी कभी तो अपनी देह तक गंवाते हैं।
               एक नहीं ऐसी अनेक घटनायें हम देखते हैं जिसमें असमय आवेश और शक्ति से अधिक साहब दिखाने वाले आदमी संकटग्रस्त होते हैं। वैसे हमारे समाज में तत्वज्ञान का अभाव साफ दिखता है।  हर आदमी हर विषय पर  बोलना चाहता है। किसी विषय में ज्ञान हो या नहीं सभी उसमें अपनी विशेषज्ञता  जाहिर करना चाहते हैं।  स्वयं को अन्य से श्रेष्ठ दिखाने के लिये मनुष्य पाखंड की हद तो पार करता ही है अपनी वाणी से अपने ऐसे कार्यों को संपन्न करने का दावा करता है जो उसने किये ही नहीं होते। सारी जिंदगी स्वार्थ में गुजारने वाले भी अपने परमार्थी होने का विज्ञापन देते हैं।
चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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प्रस्तावसदृशं वाक्यं प्रभावसदृशं प्रियम्।
आत्मशक्तिसमं कोपं यो जानाति स पण्डितः।।
          हिन्दी में भावार्थ-जो मनुष्य अनुकूल समय पर बात करता है, सामर्थ्य के अनुसार साहस दिखाता है और अपनी शक्ति के अनुसार क्रोध भी प्रकट करता है।
लावन्मौनेन नीयन्ते कोकिलैश्चैव वासराः।
यावत्सर्वजनानन्ददायिनी वाक्प्रवर्तते।।
         हिन्दी में भावार्थ-जब तक मनुष्यों को आनंद प्रदान करने वाली बसंत ऋतु नहीं आती तब तक कोयले मौन रहकर अपना दिन बिताती हैं।
       भारतीय अध्यात्मिक दर्शन से दूर होते जा रहे हमारे   समाज में शोर करने वाले साहसी और मौन रहने वाले मूर्ख माने जाने लगे हैं।  ऐसे में ज्ञानियों को कोयल की तरह समय और स्थितियां देखकर अपनी बात कहना चाहिये।  जाति, समाज, भाषा तथा धार्मिक समूहों ने देश में ऐसे हालात पैदा कर दिये हैं उन्हें अपनी प्रतिकूल बात सुनने पर आक्रामकता दिखाने की सुविधा मिल जाती है।  यह धारण बना दी गयी है कि देश का आम आदमी अपनी पहचान से बने समूहों का सदस्य है और उनके शिखर पुरुष उसके नियंत्रणकर्ता होने के साथ ही  महान सत्यवादी है।  हालांकि यह सोच एकदम भ्रामक है।  स्थिति यह है कि भारतीय अध्यात्मिक दर्शन की पहचान उन लोगों में नहीं दिखती  जो उसके विस्तार का दावा करते हैं।  ऐसे में अपनी बात केवल उन्हीं लोगों में कहना चाहिए जो सुनने की क्षमता रखते हों।  आज के खान पान, रहन सहन और चाल चलन से  मनुष्य के सहने की क्षमता कम हो गयी है।  कहा भी जाता है कि कमजोर आदमी को गुस्सा जल्दी आता है।  स्थिति यह है कि कथित महानतम ज्ञानी लोग भी अपनी बात आक्रामक शब्दों में सजाकर प्रस्तुत करते हैं।  उनका विरोध करने का मतलब  है कि उनके आश्रित आक्रामक तत्वों से सामूहिक बैर बांधना।  इसलिये  ज्ञानी और साधकों के लिये यही बेहतर है कि वह अपने शब्दों का संतुलित ढंग से उपयोग करें। इतना ही नहीं व्यर्थ के वार्तालापों में व्यस्त सामान्य मनुष्यों को भी निंदा परनिंदा से दूर होकर सकारात्मक कार्यों में अपना समय बिताना चाहिए।   
लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 

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Monday, November 05, 2012

बाह्य प्रदर्शन से नहीं वरन् उच्च व्यवहार से बनती है समाज में छवि-हिन्दू धार्मिक चिंत्तन लेख (bahari pradarshan se nahin uchcha vyavahar se bantee hain samaj chcavi-hindi relgion thought and message)

      मनुष्य में पूज्यता का भाव स्वाभाविक रूप से रहता है।  दूसरे लोग उसे देखें और सराहें यह मोह विरले ही छोड़ पाते हैं।  हमारे देश में जैसे जैसे  समाज अध्यात्मिक ज्ञान से परे होता गया है वैसे वैसे ही हल्के विषयों ने अपना प्रभाव लोगों पर जमा लिया है।  फिल्म और टीवी के माध्यम से लोगों की बुद्धि हर ली गयी है।  स्थिति यह है कि अब तो छोटे छोटे बच्चे भी क्रिकेट खिलाड़ी, फिल्म या टीवी अभिनेता अभिनेत्री और गायक कलाकर बनने के लिये जूझ रहे हैं।  आचरण, विचार और व्यवहार में उच्च आदर्श कायम करने की बजाय बाह्य प्रदर्शन से समाज में प्रतिष्ठा पाने के साथ ही धन कमाने का स्वप्न लियेे अनेक लोग विचित्र विचित्र पोशाकें पहनते हैं जिनको देखकर हंसी आती है।  ऐसे लोग  अन्मयस्क व्यवहार करने के इतने आदी हो गये हैं कि देश अब सभ्रांत और रूढ़िवादी दो भागों के बंटा दिखता है।  जो सामान्य जीवन जीना चाहते हैं उनको रूढ़िवादी और जो असामान्य दिखने के लिये व्यर्थ प्रयास कर रहे हैें उनको सभ्रांत और उद्यमी कहा जाने लगा है।  यह समझने का कोई प्रयास कोई नहीं करता कि बाह्य प्रदर्शन से कुछ देर के लिये वाह वाही जरूर मिल जाये पर समाज में कोई स्थाई छवि नहीं बन पाती। 
   विदुर नीति में कहा गया है कि
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यो नोद्भुत कुरुते जातु वेषं न पौकषेणापि विकत्वत्तेऽयान्।
न मूचर््िछत्रः कटुकान्याह किंचित् प्रियं सदा तं कुरुते जनेहि।।
        हिन्दी में भावार्थ-सभी लोग उस मनुष्य की प्रशंसा करते हैं जो कभी अद्भुत वेश धारण करने से परे रहने के साथ कभी  आत्मप्रवंचना नहीं  करता और क्रोध में आने पर भी कटु वाणी के उपयोग बचते हैं।
       न वैरमुद्दीययाति प्रशांतं न दर्पभाराहृति नास्तमेसि।
       न दुर्गतोऽस्पीति करोत्यकार्य समार्यशीलं परमाहुरायांः।।
  हिन्दी में भावार्थ- सभी लोग उत्तम आचरण वाले उस पुरुष को सर्वश्रेष्ठ कहते हैं जो कभी एक बार बैर शांत होने पर फिर उसे याद नहीं करता, कभी अहंकार में आकर किसी को त्रास नहीं देता और न ही कभी अपनी हीनता का प्रदर्शन सार्वजनिक रूप  करता है।
     इस विश्व में बाज़ार के धनपति स्वामियों और प्रचार प्रबंधकों ने सभी क्षेत्रों में अपने बुत इस तरह स्थापित कर दिये हैं कि उनके बिना कहीं एक पत्ता भी नहीं हिल सकता।  इनकी चाटुकारिता के बिना खेल, फिल्म या कला के क्षेत्र कहीं भी श्रेष्ठ पद प्राप्त नहीं हो सकता।   क्रिकेट, फिल्म और कला के शिखरों पर सभी नहीं पहुंच सकते पर जो पहुंच जाते हैं-यह भी कह सकते हैं कि बाज़ार और प्रचार समूह अपने स्वार्थों के लिये कुछ ऐसे लोगों को अपना लेते हैं जो पुराने बुतों के घर में ही उगे हों और मगर भीड़ को नये चेहरे लगें-मगर सभी को ऐसा सौभाग्य नहीं मिलता।  ऐसे में अनेक आम लोग निराश हो जाते हैं।  अलबत्ता अपने प्रयासों की नाकामी उन्हे समाज में बदनामी अलग दिलाती है।  ऐसे में अनेक लोग हीन भावना से ग्रसित रहते हैं।  पहले अहंकार फिर हीनता का प्रदर्शन आदमी की अज्ञानता का प्रमाण है।  इससे बचना चाहिए।
  हमें यह बात समझना चाहिए कि व्यक्तिगत व्यवहार और छवि समाज में लंबे समय तक प्रतिष्ठा दिलाती है। यह स्थिति गाना गाकर या नाचकर बाह्य प्रदर्शन की बजाय आंतरिक शुद्धता से व्यवहार करने पर मिलती है। खिलाड़ी या अभिनेता होने से समाज का मनोरंजन तो किया जा सकता है।  बाज़ार और प्रचार समूह भले ही वैभव के आधार पर समाज के मार्गदर्शके रूप में चाहे कितने भी नायक नायिकायें प्रस्तुत करें पर कालांतर में उनकी छवि मंद हो ही जाती है।
लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Tuesday, October 02, 2012

इतिहास से सबक सीखो-हिंदी कविता (itihas se sabak seekho-hndi kavita lesson from history-hindi poem)

बड़े बड़े शहर इतिहास में मिट गये,
कई बादशाह अपने कारनामों से पिट गये,
बहुत नामचीन और नामेवाले लोग हुए
अपने घमंड के साथ ही घिसटते रहे
फिर तुम क्यों इतना इतराते हो,
ओ, दौलत, शौहरत और ताकत वालों
अपनी कामयाबी पर नाज करने वालों
तन्ख्वाह देकर  कारिंदों को
खुद की तारीफ करना ही क्यों सिखलाते हो।
कहें दीपक बापू
आज तुम जहां खड़े हो
कल वहां कोई दूसरा खड़ा था,
जैसे तुम हो वैसे ही वह भी अड़ा था
अगर तुम न होते
तुम्हारी जगह कोई दूसरा होता
तुम क्यों अपने से जमाने को
सबक सीखना सिखलाते हो।
एक दिन तुम अपनी तारीफों से उकता जाओगे,
अपने खड़े किये अकेलेपन से डर जाओगे,
अपने महलों की रौशनी से
सभी की आंखों को कर दिया अंधा
अपने दिल का  खालीपन तब किसे दिखलाओगे।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
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Tuesday, September 18, 2012

परदे के चेहरे -हिंदी व्यंग्य कविता (parde ke chehre-hindi vyangya kavita,face on screen hindi satire on poem)

मुश्किल में देश है
हल के लिये सजती हैं महफिलें
बहसों में रोज वही चेहरे
नये अल्फाजों के साथ आते हैं,
नतीजा सिफर है
कहने वालों को मालुम नहीं क्या कहा
सुनने वाले भी भूल जाते हैं।
कहें दीपक बापू
हम तो चले भगवान भरोसे हमेशा
कभी खुश हुए कभी गमगीन,
पर्दे पर आते चेहरे देखे
कोई मीठे कोई नमकीन,
सभी बो रहे जमाने के लिये कांटे
अपने लिये उधार मे फूल लाते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 

Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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Saturday, September 08, 2012

विज्ञापन युग-हिंदी कविता (vigyapan yog-hindi kavita advertisemeng-a hindi poem)

अपनी काबलियत पर
नहीं है जिनको भरोसा
अपने हाथ से छोटे काम कर
भीड़ में जाकर वही डंका बजाते हैं,
करते हैं ज़माने का काम
वह कभी अपने मशहूरी के लिये
चौराहों पर अपने गीत नहीं गाते हैं।
कहें दीपक बापू
यह विज्ञापन युग हैं
जिसमें हल्के लोग भी
साबुन और तेल की तरह
बाज़ार में बिने आते  हैं।
................................
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप
ग्वालियर मध्य प्रदेश
Writer and poem-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior mdhya pradesh
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Tuesday, August 28, 2012

बीमार समाज सेवक-हिंदी व्यंग्य कविता (bimar samaj sewas-hindi satire poem)

 समाज की हर बीमारी के इलाज का
दावा करते हैं वह लोग,
अस्पतालों के पीछे जाकर
छिपाते हैं जो अपने रोग।
कहें दीपक जिनकी देह
अपनी शक्ति से संभाली नहीं जाती
ज़माने भर की समस्याओं पर
उनकी ज्यादा ही नज़र जाती,
कोई चंदा कोई दान जुटा रहा,
 उनके इलाज का बोझ भी समाज ने सहा,
लाचार इंसानों के जज़्बातों से
खेलना कितना आसान हो गया है
उसमें उम्मीदों का झूठा जोश जगा रहे
फरिश्ता बने कुछ लोग,
जिनके तन और मन
बेबस हो गये हैं करते हुए भोग।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप,
ग्वालियर मध्यप्रदेश

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Sunday, August 19, 2012

किसी ने ग़ज़ल कही किसी ने कहा अफसाना-हिंदी कविता (kisee ne gazal kahi kisee ne afasana-hindi kavita or poem)

तख्त वहीं रहा हमेशा
उस पर बैठे चेहरे बदलते रहे,
खजानों ने झेला हमलां
बाहर लगे पहरे बदलते रहे,
आम इंसान के बेबस रहने की कहानी एक
नाम बदला पर किरदार एक रहा,
किसी ने अफसाने  में
किसी ने गज़ल में कहा,
आसमान से कभी तारा टूटा नहीं,
कोई फरिश्ता ज़मीन पर उतरा नहीं,
सदियों करता रहा इंसान इंतजार।
कहें दीपक बापू
किसे कहें भ्रष्ट,
किसे बतायें इष्ट,
नज़र बंद कर बना रहे लोग अपना नजरिया,
सच से दूर ढूंढ रहे ख्वाब का दरिया,
बाहर के गद्दारों से खौफ नहीं
अंदर के वफदारों से ही हुए हम बेज़ार।
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लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,
ग्वालियर मध्यप्रदेश

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Monday, August 13, 2012

आओ क्रांति पर बात करें हिंदी कविता (aao kranti par bat karen)

सावधान!
क्रांति आ रही है
डरना नहीं
तुम्हें कुछ नहीं होगा
क्योंकि तुम आदमी हो
तुम्हारे पास खोने के लिये कुछ नहीं है,
मगर खुश भी न होना
तुम्हारे लिये पाने को भी कुछ नहीं ह
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Monday, July 30, 2012

समझौतावादी-हिन्दी हास्य कविता (samjhautawadi-hindi hasya kavita or saitre comedy poem)

समाज सेवक ने कहा अपने चेले से
‘‘अब न अपने पास कोई  पद है
न जनता में अपनी छवि का कोई कद है,
चलो कोई विषय बताओ
जिसे लेकर आंदोलन चलायें,
अपनी डूबती प्रतिष्ठा की नाव पार लगायें।’
तब चेला बोला
‘‘महाराज,
आप अब किसी आंदोलन के
चक्कर में नहीं पड़ना,
कहीं उससे न पड़ जाये
व्यर्थ में आपको लड़ना,
अपने बहुत सारे मसले दबे हुए हैं,
विरोधियों की नजर में फंसे हुए हैं,
इसलिये अब समझौतावादी बन जाईये,
जहां कोई आंदोलन चल रहा हो
वहां एक पांव समर्थन में
दूसरा बातचीत में लगाईये,
इससे निष्पक्ष छवि बन जायेगी,
जनता आपको सर्वमान्य बतायेगी,
लड़ रहें हो दो पक्ष
मध्यस्थ बनकर वहां घुस जायें,
वह लड़ते रहें
कभी एक न हों
यह हमेशा याद रखें
किसी के समझ में न आये
वही बात सभी को समझायें।

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Saturday, June 02, 2012

पहचान और वफा-हिन्दी कविता (pahachan aur vafa)

हमने अपने अरमान टिकायें जिनके कंधों पर
उनके  कदम मंजिल से पहले हमेशा लड़खड़ा जाते है,
उनकी जुबान से टपकते लफ्ज़ मोतियों की तरह
मगर उनसे हमारे सपने नहीं पूरे हो पाते हैं।
कहें दीपक बापू जान पहचान में न मिली वफा कभी
भटकते हैं जब हम राह, अजनबी रास्ता दिखाते हैं।
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Monday, April 02, 2012

भटकाव-हिन्दी शायरी (bhatkav-hindi sharari)

हमने देखा उनकी तरफ
बड़ी उम्मीद के साथ
शायद वह हमारी जिंदगी में
कभी बहार लायेंगे,
दोष हमारा ही था कि
बिना मतलब के
उनका साथ निभाया,
उनमें वफा करने की कला है कि नहीं
यह जाने बिना
जरूरत से ज्यादा
अपनी सादगी का रूप दिखाया,
फिर भी भरोसा है कि
इस भटकाव में भी
हम कोई नया रास्ता पायेंगे।
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Saturday, March 10, 2012

अहो, आज हमारा जन्मदिन है-हिन्दी लेख (today my birthday-hindi article,aaj mera janmadin-hindi lekh)

           
आज फेसबुक देखा तो पता लगा की हमारे लिए खास दिन है। सामाजिक संपर्क बनाने मे इंटरनेट का जो योगदान है वह अब समझ में आ रहा है। बहरहाल अहो, आज 10 मार्च की तारीख पर हमारा जन्मदिन है। सच बात तो यह है कि अंतर्जाल पर ब्लॉग, फेसबुक और ट्विटर वगैरह पर हमने अपने जन्मदिन की तारीख डाली थी तो केवल इस बाध्यता की वजह से कि कहीं परिचय पूरा न होने की वजह से हमारी परिचय सामग्री अपंजीकृत न रह जाये। 10 मार्च को हमारा जन्म हुआ पर आज तक इस तारीख को हमने कभी महत्व नहीं दिया। जन्म दिन तो खैर हमने कभी मनाया ही नहीं। इस बार भी याद नहीं था अगर फेसबुक पर बधाई संदेश नहीं देखते। जन्म दिन की तारीख को भले महत्व नहीं दिया पर बदलते समय के साथ हमने अनेक लोगों को जन्मदिन की बधाई दी है। यह परंपरा हमें विरासत में नहीं मिली। भारतीय अध्यात्म दर्शन में कहीं भी इस तरह जन्म दिन मनाने की चर्चा नहीं है इसलिये हृदय में इस परंपरा को स्थान बहुत देर बाद ही मिला। हमारी स्थिति यह है कि कहीं हम खड़े हों और कोई 10 मार्च की तारीख पुकारे भी तो हम उसे नहीं बताते कि आज हमारा जन्म दिन है-यह अलग बात है कि हमें याद भी न आता हो। सोचते हैं कि क्यों किसी को औपचारिकता पूरे के लिये बाध्य करें। इसमें कोई संदेह नहीं है कि समकालीन लोगों से जन्मदिन की बधाई मिलना हृदय में स्पंदन उत्पन्न नहीं करता। इसकी वजह यह है कि हमारी तरह उनका हाल भी यही है कि जन्म दिन पर औपचारिक रूप से बधाई देकर अपना मित्र धर्म निभाओ भले हृदय में तो उसका स्थाई भाव रहता नहीं हो।
         इधर फेसबुक, ब्लॉग और ट्विटर पर जो नयी पीढ़ी के लोग सक्रिय हैं उनके लिये जन्म दिन का विशेष महत्व है। जन्म दिन की बधाई देना उनके हृदय का स्थाई भाव बन चुका है। ऐसे में जब हम जैसा भावुक आदमी अपने जन्म दिन पर बधाई संदेश पढ़ता है तो पुरानी लीक से हटकर नयी लीक को स्वीकार कर लेता है। नयी पीढ़ी को पाश्चात्य संस्कृति से सराबोर होने का उलाहना देना ठीक नहीं है। आखिर, इसके लिये जिम्मेदार तो हम और हमारे समकालीन ही हैं। फिर हमारे जैसा लेखक बधाई संदेश के उत्तर में केवल धन्यवाद शब्द लिखकर निकल जाये तो वह हृदय स्वीकार नहीं करता। जिस तरह जन्म दिन पर बधाई देना हृदय का स्थाई भाव नहीं है उसी तरह धन्यवाद जैसी औपचारिकता निभाना भी नहीं है। पहली समस्या के हल के लिये हम कुछ नहीं कर सकते पर दूसरे के माध्यम से हम अपने नये मित्रों को यह दिखाकर प्रसन्न तो कर ही सकते हैं कि जिसे उन्होंने जन्म दिन की बधाई दी उसने अपने हृदय से उसे स्वीकार किया। एक लेखक के रूप में हमारे जैसे आम इंसान के लिये भारतीय अध्यात्म दर्शन एक शक्तिपुंज है इसमें कोई संदेह नहीं हैं। उसके अध्ययन से जहां उचित नवीन परंपराओं को स्वीकार करने का सहज भाव पैदा होता है वहीं प्राचीन ज्ञान की आधुनिक संदर्भों में व्याख्या करने की प्रेरणा हृदय में स्थापित हो जाती हैं। अपने जन्म दिन पर बधाई देने वाले अपने नये तथा पुराने मित्रों को धन्यावाद करते हुए जो हमने लिखा है वह हृदय से ही लिखा है। आशा है वह अपना सहयोग आगे भी बनाये रखेंगे।
अपने जन्मदिन के अवसर पर प्रस्तुत है यह कविता
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अपने जन्मदिन की तारीख
हम कहाँ याद रख पाते हैं,
कैलेंडर में तारीख बदलती हैं
घड़ियाँ बदलती समय
हम हालातों से जूझते रहे उम्र भर
नतीजों के हिसाब में ही
हमेशा खो जाते हैं।
कहें दीपक बापू
पूरे दिन की थकावट
बना देती है रात को बुझा चिराग
हम ठहरे आम इंसान
अंधेरे में अपने ही मौन को साथी पाते हैं,
प्रात: उगता सूरज देता हैं कुछ देर राहत
बाकी दिन तो
अपनी जरूरतों के आग से ही नाता निभाते हैं। 
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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Sunday, February 26, 2012

इंसान और साँप-हिन्दी कविता (insan aur saanp-hindi kavita ,snack and men-hindi poem)

भीड़ ने साँप देखा
एक इंसान ने उसे पकड़ा और जला दिया
इस भय से कि वह किसी को काट न ले
कहना कठिन है
इंसानों को साँप से खतरा ज्यादा है
या साँपो को इंसानों से
यह तय है कि
इंसानों के शिकार साँप अधिक होते हैं,
अपने ही साथियों की
कुछ भूलों की कीमत के बदले
अनेक साँप अपनी ज़िंदगी खोते हैं।
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Saturday, February 11, 2012

हमारे कदम-हिन्दी कविता (hamare kadam-hindi kavita or poem)


जिनका इंतज़ार किया वह कभी आए नहीं,
मिले हमसफर राह में कभी हमें भाए नहीं।
चले हम जमाने के साथ मगर हुए नापसंद
इतने तन्हा रहे की अपने साये भी साथ नहीं।
बस यूं ही लफ्जों में अपने जज़्बात भरते रहे,
जुल्म सहे पर तसल्ली है किसी पर ढाये नहीं।
कहें दीपक बापू खुद से बात करते बिताया समय
हमारे कदम चल अपनी राह,आँसू कभी बहाये नहीं।
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Sunday, January 29, 2012

पत्थर और शब्द-हिन्दी कविता (patthar aur shabd-hindi kavita or poem-stone and ward)

पत्थरों के खेल होते हैं
मगर वह जीते नहीं जाते,
कुछ घायल होते
कुछ बेमौत मर जाते।
कहें दीपक बापू
आओ
चंद शब्द मन में दुहराएँ,
कलम से होते जो कागज पर उतार आयें,
इंसान खुशनसीब है
भाषा मिली है बोलने के वास्ते,
क्यों चुने फिर पत्थर के रास्ते,
जज़्बातों में कुब्बत हो तो
दहशत के माहौल में भी
हँसते नगमे दिल पर परचम फहराते।
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Saturday, January 21, 2012

कभी नायक कभी खलनायक क्रिकेट टीम इंडिया-हिन्दी व्यंग्य (when hero when wilen cricket team india-hindi vyangya or satire

      टीम इंडिया आस्ट्रेलिया गयी तो उसे नायकत्व का दर्जा दिया गया और वह हार रही है तो उसे खलनायक की तरह प्रचारित किया जा रहा है। टीम जीतती तो खुशखबरी बनती और तब भी टीवी चैनलों पर विज्ञापन का दौर चलता। वह जीतने के बाद किसी होटल में जश्न मनाने पहुंचती तो उसका समाचार इस तरह आता कि‘‘ आज इंडिया टीम जीत का जश्न मनाने होटल पहुंची। वहां खिलाड़ियों ने शर्बत किया और पाव भाजी, डोसा औद दही बड़ा खाया।’’
       कहीं नौकायन के लिये जाती तो यह खबर आती कि ‘अमुक जलाशय धन्य हो गया कि विजेताओं ने वहा पदार्पण किया।’’
      वहां के नाविकों और पाव भाजी बेचने वालों के साक्षात्कार आते कि किस तरह विजेताओं को देखने का सौभाग्य पूर्वजन्म के पुण्यों के कारण उनको प्राप्त हुआ। तमाम तरह के दृष्टिकोणों से सृजित दृश्य हर टीवी चैनल पर आते। समाचार पत्रों में तो खैर एकाध फोटो वैसे ही छपता है पर उस समय पूरे पेज ऐसे फोटो से सजे होते। इससे समाचार सृजकों का श्रम और प्रसारकों का धन कम खर्च होता पर आय जमकर होती। अब टीम हार रही है।
        ऐसे में टीवी चैनल वाले क्या करें? आधे घंटे क्रिकेट पर कैसे व्यय कर अपना काम चलायें? श्रृंगार रस नहीं मिल रहा तो करुण रस की सुविधा तो ली जा सकती है। टीम हार रही है इससे लोग न नाराज हैं न खुश। पता नहीं कितने खेलों में कितनी जगह अपने देश की टीमें हारती हैं। समस्या क्रिकेट को लेकर आती है। कहा जाता है कि भारत में क्रिकेट एक धर्म है पर हमें अब ऐसा नहीं लगता। अलबत्ता प्रचार माध्यमों के लिये कमाई का एक बहुत जरिया है। इसलिये टीम के हारने पर वह करुणापूर्वक आर्तनाद कर रहे हैं। जिस क्रिकेट खिलाड़ी को भारत रत्न देने की मांग हो रही थी अब उसे टीम से निकालने तक का संदेश प्रसारित हो रहा है। दीवार की तरह खड़े एक खिलाड़ी को ढहाने के लिये कहा जा रहा है। इस आर्तनाद को और गहरा बनाने के लिये टीम इंडिया के खिलाड़ियों के घूमने फिरने और आराम करने पर प्रतिकूल टिप्पणियां करते हुए समाचार दे रहे हैं। निराशा को भुना रहे हैं। तय बात है कि इसमें भी विज्ञापन का समय पास होता है। भले ही उसमें प्रसन्नता के दौरान होने जैसा लाभ नहीं मिलता।
        एक जगह टीम ने अभ्यास नहीं किया। लगातार तीन टेस्ट मैच हारने वाली टीम इंडिया अपने होटल में आराम करती रही जबकि चौथा टेस्ट मैच शुरु होने में तीन रह गये थे। जीत की तिकड़ी जमा चुकी आस्ट्रेलिया की टीम ने जमकर अभ्यास किया। वह टीम इंडिया के सफाये की तैयारी में होगी और अपने ही देश में शेरों को दूसरे के सफाये के लिये उकसाने वाले प्रचार माध्यम उस पर आर्तनाद का वातावरण बना रहे हैं। एक पुराने क्रिकेट खिलाड़ी और अब विशेषज्ञ की भूमिका निभाने वाले का मानना है कि यह गलत रवैया है। दूसरे ने कहा कि इस तरह की बहानेबाजी केवल दिखावा है कि टीम को सही खिलाड़ी गेंदबाजी के लिये नहीं मिला, टीम के पास अपने तेज गेंदबाज हैं उनसे अभ्यास के लिये काम लिया जाता तो उनमें भी निखार आता। वह दोनों पुराने खिलाड़ी हैं और उन्होंने इतना पैसा क्रिकेट में नहीं कमाया होगा जितना अब वाले कमा रहे हैं। इन दोनों महानुभावों ने अगर इतना पैसा कमाया होता तो इस समय विशेषज्ञ के लिये टीवी चैनलों पर दौड़े न चले आते।
           आस्ट्रेलिया वाले इसलिये मेहनत कर रहे हैं क्योंकि उनको पैसा कमाना है। वैसे भी टीम इंडिया के मुकाबले उनको पैसा कमाने का मौका इतना नहीं मिलता। टीम इंडिया के खिलाड़ियों ने इतना पैसा कमा लिया है कि बड़े बड़े सेठों के लिये उतनी रकम पूरी जिंदगी में कमाना एक सपना ही हो सकती है। यह टीवी चैनलों में नौकरी कर रहे लोग तो अपनी जिंदगी में उतना पैसा भी नहीं कमा सकते जितना एक दो साल में यह खिलाड़ी कमा लेते है। फिर विदेश में जाकर कैसा काम? अपने देश में जो अधिक कमाता है वही अपने खर्च पर विदेश में घूमने जाता है फिर इन खिलाड़ियों ने तो कई अमीरों से ज्यादा कमा लिया है वह विदेश में जाकर मजे न करें तो क्या खाक छाने? अपने देश में तो जीतकर देते हैं। विदेश में अब हारें तो बाद में फिर देश में जितवा देंगे। मगर चलिये आर्तनाद भी बिकने की चीज है। प्रचार माध्यमों को क्रिकेट में आर्तनाद भी बेचना है।
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Tuesday, January 10, 2012

यह बात समझ में नहीं आती-हिन्दी शायरी (yah baat samajh mein nahin aati-hindi shayari)

मिलावटी दूध
कैसे दुनियां का सबसे ताकतवर देश बनायेगा
यह बात समझ में नहीं आती,
सवा अरब की आबादी में
इंसानों के वेश पहने कितने पशु हैं
यह बात समझ में नहीं आती।
कहें दीपक बापू
तरक्की का रथ चलता जा रहा है
कितनी मासूम जानें
नीचे दबी हैं
आचरण की दर कितनी गिरी है
यह बात समझ में नहीं आती।
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Thursday, January 05, 2012

रूह और दिल-हिन्दी हाइकू (rooh aur dil-hindi hique)

सुंदरता की
पहचान किसे है
सभी भ्रमित,

दरियादिली
किसे कैसे दिखाएँ
सभी याचक,

वफा का गुण
कौन पहचानेगा
सभी गद्दार,

खाक जहाँ में
फूलों की कद्र कहाँ
सांस मुर्दा है,

बेहतर है
अपनी नज़रों से
देखते रहें,

खुद की कब्र
खोदते हुए लोग
तंगदिली में,

भरोसा तोड़ा
जिन्होने खुद से
ढूंढते वफा,

उन चीजों में
जो दिल को छूती हैं
रूह को  नहीं,

उनके दाम
सिक्कों में नपे हैं
दिल से नहीं।
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