Monday, July 27, 2009

तुम हो वह तिल-हास्य कवितायें (hasya kavita)

दिल बहलाना अब व्यापार हो गया है
और व्यापार कभी
दिल बहलाने के लिये नहीं होता।
मुफ्त में कुछ कोई नहीं दिल बहलाता
कहीं न कहीं जेब से पैसा जाता
विज्ञापन वह फन है
जिसमें हर कोई माहिर नहीं होता।
देखते रहे चाहे कितना खेल आंखों से
जेब से पैसा जब निकलता है
तब कोई नहीं देख रहा होता।
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बहला लो चाहे कितना दिल
कहीं न कहीं चुकाओगे बिल।
दिल के व्यापारी
खेल का भी व्यापार करते हैं
जिससे तेल निकालेंगे, तुम हो वह तिल
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संगीत का शोर न हो तो
आंखों से कौन देखता है दृश्य।
जब कानों से देखने का काम लेंगे
तो क्या समझेंगे
वाह वाह जुबान से किये जाते हैं
बुद्धि से हो जाती है सोच अदृश्य।

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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

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