Wednesday, December 23, 2009

गद्दार कदम-हिन्दी साहित्य कविता (gaddar kadam-hindi sahitya kavita)

 अपनी खुशियां मिलकर बांटते होते हम।

तब नहीं छाये होते पूरे जमाने के दिल में गम।

अब जज़्बातों के सौदागर सपने बेच रहे हैं

बाजार में लोगों के दर्द पर, करके अपनी आंखें नम।

अपने नाम के पैसों खाता देखकर,  खुश हो रहे अमीर

बढ़ते आंकड़ों में देख रहे जिंदगी का  पूरा दम।

वतन से प्यार के नाम पर कर रहे चमन से धोखा

कुचल रहे फूल सी वफा, माली के  गद्दार कदम।

नहीं सोचते जब जमाना टूट कर बिखर जायेगा

उनके घरों की तरफ भी बढ़ेंगे, कातिलों के कदम।।


 
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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