चौराहे पर चार लोग आकर
चिल्लाते जूता लहरायेंगे,
चार लोग नाचते हुए
शांति के लिये सफेद झंडा फहरायेंगे।
चार लोग आकर दर्द के
चार लोग खुशी के गीत गायेंगे।
कुछ लोगों को मिलता है
भीड़ को भेड़ों की तरह चराने की ठेका
वह इंसानो को भ्रम के दरिया में बहायेंगे।
सोच सकते हैं जो अपना,
दर्द में भी नहीं देखते
उधार की दवा का सपना,
सौदागरों और ढिंढोरची के रिश्तों का
सच जो जानते हैं
वही किनारे खड़े रह पायेंगे।
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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6 years ago
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