Thursday, April 15, 2010

बेबस इंसान सभी जगह रोता-हिन्दी शायरी (bebas insan sabhi jagah rota-hindi shayri)

वह इसलिये भोले नज़र आते हैं
क्योंकि उनकी चालाकियां कोई पकड़ नहीं पाया।
उनके घर के बाहर नाम पट्टिका पर
साहूकार लिखा है
क्योंकि उनकी चोरी कोई पकड़ नहीं पाया।
कौन उठायेगा उंगली उनके काम पर
पहरेदार को ही अपने घर लगाया।
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कितने भलमानस इस धरती पर
विचर रहे हैं
सभी अगर वादे के अनुसार काम करते तो
धरती पर स्वर्ग होता।
मगर गरीब, बेबस, और मजदूर के भले के नाम
कर रहा है कोई कत्ल तो कोई दलाली
उजाड़ रहे बाग़ बनकर माली
शैतानों ने फरिश्ते का मुखौटा ओढ़ा
बेबस इंसान तो सभी जगह रोता।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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