Sunday, May 30, 2010

अमन और तरक्की गेंहूं की तरह पिसते हैं-हिन्दी शायरी (aman aur tarakki piste hain-hindi shayari)

खिली हुई हैं उनकी बाछें,
बिछ गयी हैं फिर जमीन पर आज कुछ लाशें,
क्योंकि कातिलों से उनके जज़्बातों के रिश्ते हैं।
अपने ख्यालों का ओर छोर पता नहीं,
हमख्याल जहां देखते, कोरस गाने लगते हैं वहीं,
अपनी अक्ल किराये पर चलाते हैं,
पर आजाद खुद को बताते हैं,
खूनखराबे और शोरशराबे के चलते चक्रों में
देख रहे ज़माने का भला
जिनमें अमन और तरक्की गेंहूं की तरह पिसते हैं।
जिस पर रोटी पकाने के लिये वह लिखते हैं।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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