Sunday, July 18, 2010

झगड़ा जैसे रबड़-हिन्दी हास्य कविताएँ (hasya kavitaen in hindi)

दुनियां के लोग जिस तरह
र्दौलत और शौहरत के दीवाने हैं
उसे देखकर नहीं लगता कि
जाति, धर्म और भाषा के लिये होने वाले
झगड़े सच में हो पाते हैं,
कई चेहरे नकाब पहनकर
इधर भी लड़ते हैं तो उधर भी,
अमन के लिये जंग लड़ते हैं सभी
आम आदमी पहले उनमें मिक्स हो जाते हैं,
पर फिर उसी झगड़े को फिक्स पाते हैं।
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खबरची ने ऊंची आवाज में कहा
‘‘कल रात बहुत झगड़ा हुआ
कई लोग पिटे,
कई शीशे के सामान गिरकर मिटे,
पत्थर चले जमकर,
गालियां दी गयी तनकर,
आओ सुनो, मेरे पास पूरी खबर है।’’
आम आदमी ने कहा
‘‘पहले यह बताओ
इस झगड़े को किसने किया था प्रायोजित,
फिर बताना कहां और कब हुआ आयोजित,
आजकल के लोगों के इतनी दम कहां है कि
बिना पैसे खींच पायें झगड़ा जैसे रबड़।’’
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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