सफेद कपड़े पर भी
कभी न कभी दाग लग जाते हैं,
मगर फिर भी काली नीयत
ओढ़ते हैं
छिप जाता है उनका बदन
मगर उनके कारनामों का
अक्स चेहरे पर दिखाई देता है,
अपनी जुबां से भले ही झुठ बोले जाते हैं।
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अपनो से वादे कर
वह बन गये सिरमोर बन गये,
मगर बेचा भरोसा परायों को
और अपनों में दौलतमंद की तरह तन गये।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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