यह क्या हो रहा है-हास्य कविता
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पोते ने दादा से पूछा
‘‘दादाजी, यह टीवी पर बार बार क्रिकेट
का
समाचार आता ह,ै
चलती बहस में कोई मुस्कराता
कोई आस्तीर ऊपर कर गुर्राता,
मगर न बल्ला दिख रहा है
न गेंद नजर आ रही है,
कहीं मैदान पर हरियाली भी
नहीं छा रही है,
बातें मेरी समझ में नहीं आ रही है,
इतना पता है कहीं स्पॉट फिक्ंिसग
कहीं सट्टे की लहर छा रही है,
आप ही समझाओ यह क्या हो रहा है?
दादा ने हंसते हुए कहा
‘‘बेटा,
तेरा आईपीएल का खत्म हो गया खेल,
टीवी से चिपका रहा तू हो गया फेल,
मगर क्रिकेट के धंधे वालों की हो
गयी चांदी
तिजोरियां भर गयी उनकी रुपये और सोने
से
सट्टे की आई जो आंधी,
अभी चैंपियन ट्राफी शुरु होने में
समय बाकी है,
खाली समय में टीवी चैनलों के विज्ञापन
का समय
पास होता रहे
यह बहसें उन्होंने इसलिये पर्दे पर
टांकी है,
लोग भूल न जायें क्रिकेट को
इसलिये खाली समय में कर रहे फिक्स
झगड़ा
इसमें ही मिक्स है इस्तीफों का भी
रगड़ा,
अगर देखते रहना है क्रिकेट तो
बंद कर लो अक्ल के दरवाजे,
उसी पर आंख लगाओ जो पर्दे पर विराजे,
इसलिये मत पूछो यह क्या हो रहा है।
लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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