देश में राजनीतिक परिवर्तन के साथ ही इस बात पर भी बहस एक टीवी चैनल पर
चली कि क्या हिन्दी के भी अच्छे दिन आने वाले हैं? दरअसल इस बहस का आधार
यह था कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार के एक बहुत
समर्थक भी हैं। वह भविष्य में
विदेशी नेताओं से हिन्दी में बात करेंगे।
इसे लेकर हिन्दी के कुछ विद्वान उत्साहित हैं। उनका मानना है कि जिस तरह देश के आर्थिक विकास
की लहर पूरे देश के अच्छे दिन आने के नारे को बहाकर लायी है उसी तरह हिन्दी भी अब
अंतराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानजनक स्थान प्राप्त करेगी। हमारा मानना है कि हिन्दी भाषा अंततः भविष्य
में वैश्विक भाषा बनेगी पर इसके लिये भारत के सामान्य जनमानस में यह विश्वास जगाना
आवश्यक है कि भविष्य में उसका काम बिना हिन्दी के चलने वाला नहीं है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि नये प्रधानमंत्री श्री
नरेंद्र मोदी राष्ट्रभाव से ओतप्रोत हैं पर यह भी सच है कि देश में आर्थिक विकास
करने के साथ ही संास्कृतिक उत्थान बिना सामान्य जन के बिना संभव नहीं है।
हम यहां केवल हिन्दी भाषा की चर्चा कर रहे हैं इसलिये यह कहने में संकोच
नहीं है कि इस संबंध में आम भारतीय का रवैया भी वही है जो उसका अपने जीवन को लेकर
है। जिस तरह वह यह आशा करता है कि उसके
जीवन का उद्धार कोई अवतारी पुरुष करेगा वही हिन्दी के संबंध में भी उसकी धारणा
है। हर सभ्रांत व्यक्ति चाहता है कि उसके
बच्चे को अंग्रेजी में महारथ हासिल करना चाहिये और हिन्दी का सम्मान दूसरे लोग
करें। स्थिति यह है कि अनेक कलाकारों, विद्वानों, तथा लेखकों का जीवन हिन्दी भाषा के दम पर चल
रहा है पर वह अपनी बात कहने के लिये अंग्रेजी का सहारा लेते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि सभ्रांत वर्ग जो कि भाषा, संस्कृति, संस्कार तथा ज्ञान की रक्षा में सबसे ज्यादा
योगदान देता है उसमें आत्मविश्वास का अभाव है। उसे नहीं लगता कि हिन्दी के सहारे
आर्थिक विकास किया जा सकता है। उसका दूसरा संकट यह भी है कि वह पूरी तरह से
अंग्रेंजी का आत्मसात भी नहीं कर पाया है। हमने अनेक कलाकारों, विद्वानों, तथा लेखकों को हिन्दी की खाते और अंग्रेजी की
बजाते देखा है पर यह पता ही नहीं लग पाता कि वह अंग्रेजी में ही सोचते हैं या
हिन्दी में सोचकर अंग्रेजी में बोलते हैं।
हिन्दी विद्वानों में भी भारी अंतर्द्वंद्व है। वह हिन्दी का प्रयोग बढ़ाने
के लिये उसमें जमकर अंग्रेजी शब्द ठूंसने की बात करता है। परिणाम यह हो रहा है कि
एक हिंग्लििश भाषा का निर्माण हो रहा है जो भविष्य में किसी काम की नहीं है। भाषा
की रक्षा साहित्य से होती है और हिंग्लिश वाले किसी साहित्य रचना योग्य नहीं
लगते। जिनकी हिन्दी लेखन में रुचि है वह
अपनी भाषा में शब्दों का प्रयोग सावधानी से करते हैं।
बाज़ार हिन्दी भाषियों को
उपभोक्ता से अधिक स्तर प्रदान नहीं करता।
अंतर्जाल पर भी यही हाल है। अंग्रेजी पर टीका टिप्पणी करने वालों को प्रचार
माध्यम महत्व देते हैं। किसी के हिन्दी वाक्य
अगर प्रचारित होते हैं तो वह कोई बड़ा धनी, पदवान या कलाकार होता
है। सामान्य लोगों को अपने फेसबुक या
ट्विटर पर आने वालों को यह प्रचार माध्यम दिखाते हैं पर किसी खास विषय पर लिखे गये
किसी ब्लॉग या फेसबुक के ऐसे पाठ की चर्चा कभी नहीं देखी गयी जो किसी सामान्य लेखक
ने लिखा हो।
हिन्दी के अच्छे दिन आयेंगे
या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता पर हिन्दी में लेखन करने वालों को यह कदापि आशा
नहीं करना चाहिये कि उन्हें कोई सम्मान या पुरस्कार चमचागिरी या संगठित ठेकेदारों की चरणवंदना किये
बिना मिल जायेगा। हिन्दी लेखन तो स्वांत सुखाय ही हो सकता है। अगर आप लेखक हैं तो अपनी कोई रचना लिख लें तो
समझिये वही अच्छा दिन है। पिछले सात वर्षों से अंतर्जाल पर लिखते हुए हमने यही
अनुभव किया है।
लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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