Wednesday, October 22, 2014

फेसबुक पर बन रहा है नया समाज-हिन्दी लेख(fecebook par ban rahaa hai naya samar-hindi lekh)



            अमृतसर जाते हुए शताब्दी रेल में इस लेखक की मुलाकात एक युवक विपिन त्यागी से हुई थी जो फेसबुक पर सक्रिय हैं।  यह मजेदार बात है कि इस यात्रा में हमारे साथ एक मित्र थे जिनकी बेटी भी फेसबुक पर सक्रिय हैं।  यह लेखक जब आसपास सक्रिय युवक युवतियों पर दृष्टिपात करता है तो ऐसा लगता है कि नयी पीढ़ी से फेसबुक पर संपर्क रहकर रिश्ता जीवंत बनाया जा सकता है।  मित्र, रिश्तेदारों तथा सहकर्मियों के बच्चों से संपर्क बने रहना अपने आप में एक अजीब अनुभूति देता है।  अगर यह फेसबुक न हो तो ऐसे संबंधों में निरंतरता नहीं रहती जहां सदेह मिलना अनिवार्य हो। अभी तक यह कहा जाता है कि इंटरनेट सामाजिक संबंधों को ध्वस्त कर रहा है पर जिन लोगों को इंटरनेट पर कार्य का अनुभव हो जाये वह ऐसा कभी नहीं कहेंगें। हमें तो यह लग रहा है कि फेसबुक ऐसे संबंधों को जीवंतता प्रदान कर रहा है जो सदेह भेंट के अभाव में अपना अस्तित्व खो सकते हैं।
            विपिन त्यागी ने मेरे सामने ही फेसबुक पर मित्रवत निवेदन मोबाइल से दिया था। मैंने उनको बता दिया था कि इसे स्वीकार करने में कम से कम पांच दिन लगेंगे।  दिल्ली में हम दोनों अलग अलग हो गये थे। अगर यह फेसबुक की सुविधा न होती तो विपिन त्यागी और हमारा संवाद आगे संभव नहीं था। जिंदगी की अनेक यात्राओं में सैंकड़ों यात्री मिले मगर फिर संपर्क नहीं हुआ।  पिछली तीन चार यात्राओं में अनेक ऐसे  युवक युवतियों ने हमारे फेसबुक पर अपना संपर्क सूत्र स्थापित किया जो इंटरनेट के बिना संभव नहीं था।  उससे तो यह लगता है कि इंटरनेट जहां एक तरफ हानिप्रद है तो उसके लाभ भी हैं।  अगर सीमित रूप से श्रम, समय और धन व्यय हो तो यह साधन जरूर लाभप्रद है।  पागलों की तरह अगर इसका उपयोग किया जाये तो इसकी हानियां भी बहुत हैं।  खासतौर से मस्तिष्क में इसका जो दुष्प्रभाव होता है वह अधिक दिखता है।
            बहरहाल इतना तय है कि हम एक नये समाज की तरफ बढ़ रहे हैं।  विपिन त्यागी से तीन चार घंटे संपर्क रहा तो उनका व्यक्तित्व निच्छल और निर्मल दिखाई दिया।  हम अंतर्जाल को आभासी विश्व मानते हैं पर उनके साथ हुआ प्रत्यक्ष संपर्क एक सत्यता है।  अंतर्जाल पर अनेक ऐसे मित्र हैं जिनके नाम, काम और पते छद्म हैं।  इनमें कुछ नाम प्रमाणिक हैं जो कि एक सुखद अनुभूति प्रदान करते हैं। इस तरह अंतर्जाल पर आभासी तथा प्रमाणिक विश्व का अंतर्द्वंद्व हमेशा रहेगा। यह बात भी तय है कि आभास की बजाय  सत्य की अनुभूति अधिक सुखद लगती है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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