Friday, November 21, 2014

स्वंय से छल-हिन्दी कविता(swayan se chhal-hindi poem)



 मिठास की चाहत में
मक्खियां ही नहीं
मनुष्य भी खिंचे चले आते हैं।

सूरज की रौशनी
जब तक रहती धरती पर
पंछी चहाचहाते
अंधियारे के आते ही
घौंसले में चले जाते हैं।

कहें दीपक बापू शिकायत बेकार है
ज़माने की बेवफाई की
झांके अपने दिल में
दूसरा क्या धोखा देगा
हम स्वयं से ही छले जाते हैं।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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