Sunday, December 14, 2014

समाधि विवाद पर पाश्चात्य विज्ञान के तर्क आवश्यक नहीं-हिन्दी चिंत्तन लेख(samadhi vivad par pashchatya vigyan ke tarka avashyak nahin-hindi thought article)




            एक प्रतिष्ठित संत की हृदयाघात से निधन हो गया।  उसे चिकित्सकों के पास ले जाया जिन्होंने उसे मृत घोषित कर दिया। जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे देश में धर्म के नाम एक ऐसी परंपरा भी है जिसमें भक्तों से दान लेकर आश्रम बनाकर स्वयंभू गुरु स्वयं को भगवान का रूप घोषित कर देते हैं।  अनेक गुरु तो ऐसे हैं कि राजाओं की तरह सिंहासन पर विराजकर भक्तों को प्रजा की तरह संबोधित करते हैं-इससे उनके अंदर की राजसी महत्वांकाक्षा शांत होती है यह अलग बात है कि वह सात्विक दिखने का प्रयास करते हैं। उनके शिष्य अपने गुरु के राजसी भाव को सात्विकता के वस्त्र प्रहनाने लगते हैं। हैरानी तब होती है जब त्रिगुणमयी माया के समंदर मे आकंठ डूबे इन लोगों को महान योगी कहा जाता है।
            बहरहाल इन कथित संत की देह को  शिष्यों ने बाद में शीत यंत्र में डाल दिया ताकि वह सड़े नहीं।  अब टीवी चैनलों पर पंद्रह दिन से बहस हो रही है।  हम जैसे योग तथा गीता साधकों के लिये खाली समय में टीवी देखने के अलावा कोई दूसरा स्वाभाविक कर्म नहीं होता।  इस पर बचपन से द्वंद्वों से भरे समाचार सुनने और पढ़ने की गंदी आदत इस काम के लिये हमेशा प्रेरित करती है।  अब मुश्किल यह है कि पतंजलि योग तथा श्रीमद्भागवद् गीता का अध्ययन कर लिया जिससे अध्यात्म और धर्म पर एक वैचारिक स्वरूप बना है। जब बाहर देखते हैं तो ऐसा लगता है कि धर्म के नाम पर इतना पाखंड है कि कहीं किसी ज्ञानी के होने की कल्पना करना भी कठिन है।  वेद, पुराण, रामायण, गीता और अन्य प्राचीन ग्रंथों के शब्द यहां इस विद्वानों के मुख इस तरह दोहराये जाते हैं कि हृदय प्रसन्न हो जाये पर बहुत जल्दी  सुखांत अनुभूति यह देखकर निराशा में बदल जाती है कि उनके अर्थों की व्याख्या एकदम सांसरिक विषयों से जुड़ी होती है।
            बहरहाल एक कथित धार्मिक बुद्धिमान ने यह दावा किया आज के वैज्ञानिक युग में संत के देहावसान को समाधि  नहीं माना जा सकता।  हमारा तर्क यह भी है कि इस देहावसान को समाधि न मानने के पीछे आज के विज्ञान का तर्क जरूरी नहीं है यह तो हम जैसा तुच्छ व्यक्ति पतंजलि योग के आधार पर वैसे ही कह सकता है यह समाधि नहीं है।  दरअसल इस तरह संत के शव को रखने के  पीछे संपत्ति का झगड़ा भी नहीं हो सकता पर गद्दी का विवाद जरूर है।  हर संत के देहावसान के बाद उसका प्रिय शिष्य गद्दी पर बैठता है।  अधिकतर संत  पहले ही इसे घोषित कर देते हैं। पहले भी अनेक संत हुए जिन्होंने अपने संगठन का उतराधिकारी घोषित किया।  यह पंरपरा सिख धर्म से ही आयी लगती है।  सिखों के गुरु हमेशा ही अपना उतराधिकारी घोषित कर देते जिससे बाद में कोई विवाद नहीं हुआ। दसवें गुरु श्रीगोविंद सिंह जी ने इस परंपरा को समाप्त करते हुए अपने पश्चात् शिष्यों के समक्ष गुरुग्रंथ साहिब को ही गुरु मानने का आदेश दिया।
            सिख आज भी गुरु ग्रंथ साहिब को ही गुरू मानकर चलते हैं। सिख धर्म को आजकल राजनीतिक कारणों से हिन्दू धर्म से अलग माना जाता है पर वास्तविकता यह है कि यह एक पंथ है जिसकी एक संगठन के रूप में स्थापना हुई थी। इस तरह सिख पंथ की संगठन के रूप में चलने की परंपरा देश में अन्य पंथों की प्रेरणा बनी।  हिन्दू धर्म के अंदर ही अनेक पंथ बन गये हैं जिनके गुरु अपने अंदर भगवान की तरह पुजने की इच्छा रखते हैं। यह गुरु धन, शिष्य तथा अन्य साधनों का संचय करते हैं। जो अपने जीवनकाल में अपना शिष्य घोषित करते हैं उनके संगठन बच जाते हैं जहां नहीं करे वह अनेक नाटक प्रारंभ हो जाते हैं। इन कथित संत की समाधि का नाटक भी इसी तरह का है। उनकी मृत्यु को समाधि बताने के पाखंड का अत पता नहीं कब होगा पर इसकी आड़ में भारतीय धर्म को बदनाम खूब किया जा रहा है। खासतौर से विज्ञान का नाम लेकर यह साबित किया जा रहा है कि हमारे अध्यात्मिक दर्शन में उसका कोई स्थान नहीं है। जबकि पंतजंलि योग के आधार पर कोई भी कह सकता है कि यह समाधि नहीं है। इस विषय में पाश्चात्य विज्ञान की आवश्यकता उन लोगों को है जो पतंजलि योग को विज्ञान नहीं मानते।
            हमारे यहां आजकल विज्ञान की बात इस तरह कही जाती है जैसे कि उसका हमारे देश में कभी अस्तित्व ही नहीं रहा। जबकि रामायण और महाभारत काल के दौर में जिस तरह के अस्त्रों शस्त्रों का प्रयोग युद्धों में हुआ उससे ऐसा लगता है कि उस समय भी विज्ञान का महत्व था।  कुछ लोग कह सकते हैं कि इससे विज्ञान के महत्व का पता नहीं चलता तो इसका जवाब यह है कि जिस पाश्चात्य विज्ञान के के आधार पर अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रंास का गुणगान करते हैं वह हथियारों की वजह से ही प्रमाणिक माना जाता है। वैसे भी श्रीमद्भागवत गीता में विज्ञान का महत्व ज्ञान के समकक्ष ही माना गया है।
लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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