Sunday, September 21, 2008

आत्ममुग्ध लोगों की कमी नहीं इस जमाने में-व्यंग्य कविता

अपने मूंह से अपनी तारीफ़

लोग कुछ इस तरह किये जाते हैं

जैसे दुनियां में उनके नाम के ही

सभी जगह कसीदे पढे जाते हैं

आत्म मुग्ध लोगों की कमी नहीं

इस जमाने में

तारीफ़ के काबिल लोग

इसलिये किसी के मूंह से

अपने लिये कुछ अच्छे शब्द सुनने को

तरस जाते हैं

शायद इसलिये ही

चमक रहे आकाश में कई नाम

गरीब लोगों की भलाई के सहारे

फ़िर भी गरीबी से सभी हारे

क्योंकि भलाई एक नारा है

जिसके पांव ज़मीं पर नज़र नहीं आते हैं
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उनका दिल समंदर है

इसलिये ही ज़माने भर का माल

उनके घर के अंदर है

ज़माने भर की भलाई का ठेका लेते हैं

सारी मलाई कर देते हैं फ़्रिज़

छांछ पिला देते हैं अपने ही गरीब चाकरों को

जो उनकी नज़र में पालतू बंदर हैं

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