Tuesday, September 23, 2008

जब फिक्र ही कयामत लायी-हिंदी शायरी

पूरी उम्र फिक्र करते रहे
कयामत के खौफ और इंतजार की
पर वह नहीं आयी
आंखें तब खुलीं जब
फिक्र ही कयामत लायी
.................................
उनका ‘बेफिक्र रहो’ कहने से ही

अपनी फिक्र बढ़ जाती है

क्योंकि फिर उनको हमारी याद नहीं आती

उनकी बेफिक्री बहुत डराती है

उनके लिये यह दो लफ्ज हैं

जिसकी जगह उनके दिल में ही नहीं होती

ऐसे में फिर फिक्र कहां दूर हो पाती है

..............................



यह कविता इस ब्लॉग
'दीपक भारतदीप की शब्द प्रकाश-पत्रिका'
पर मूल रूप से प्रकाशित की गयी है और इसके प्रकाशन किसी अन्य को अधिकार नहीं है.

No comments:

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

लोकप्रिय पत्रिकाएँ

विशिष्ट पत्रिकाएँ