Monday, April 06, 2009

भीड़ जो टुकड़ा टुकड़ा हो गयी है-हिंदी शायरी

खो गया था अनमना होकर
वह कहीं भीड़ में
अब होश आया तो
अपनी असलियत ढूंढ रहा है
जो टुकड़ा टुकड़ा हो गयी है।
चारों तरफ नरमुंडों के
झुंड के बीच वह खड़ा
फिर भी अकेलेपन का अहसास उसे सताता है
इस भीड़ का घर छोड़ा
दूसरी भीड़ के दरवाजे से नाता जोड़ा
फिर भी नहीं ढूंढ पाया अपना अक्स
वह शख्स!
लोगों के झुंड का बाहर से एकजुट होने भ्रम था
वह भीड़ अंदर टुकड़ा टुकड़ा हो गयी है।

..........................
लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकाएं भी हैं। वह अवश्य पढ़ें।
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका
4.अनंत शब्दयोग
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

1 comment:

श्यामल सुमन said...

बहुत खूब। कहते हैं कि-

सभी के साथ में जीकर भी अलग रहा हूँ मैं
दब गया राख में तो पर भी सुलग रहा हूँ मैं।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

समस्त ब्लॉग/पत्रिका का संकलन यहाँ पढ़ें-

पाठकों ने सतत अपनी टिप्पणियों में यह बात लिखी है कि आपके अनेक पत्रिका/ब्लॉग हैं, इसलिए आपका नया पाठ ढूँढने में कठिनाई होती है. उनकी परेशानी को दृष्टिगत रखते हुए इस लेखक द्वारा अपने समस्त ब्लॉग/पत्रिकाओं का एक निजी संग्रहक बनाया गया है हिंद केसरी पत्रिका. अत: नियमित पाठक चाहें तो इस ब्लॉग संग्रहक का पता नोट कर लें. यहाँ नए पाठ वाला ब्लॉग सबसे ऊपर दिखाई देगा. इसके अलावा समस्त ब्लॉग/पत्रिका यहाँ एक साथ दिखाई देंगी.
दीपक भारतदीप की हिंद केसरी पत्रिका


हिंदी मित्र पत्रिका

यह ब्लाग/पत्रिका हिंदी मित्र पत्रिका अनेक ब्लाग का संकलक/संग्रहक है। जिन पाठकों को एक साथ अनेक विषयों पर पढ़ने की इच्छा है, वह यहां क्लिक करें। इसके अलावा जिन मित्रों को अपने ब्लाग यहां दिखाने हैं वह अपने ब्लाग यहां जोड़ सकते हैं। लेखक संपादक दीपक भारतदीप, ग्वालियर

लोकप्रिय पत्रिकाएँ

विशिष्ट पत्रिकाएँ