Tuesday, June 21, 2011

कोई भेड़िया कोई नाग है-हिन्दी कविता(koyee bhediya koyee naag hai-hindi poem)

चांद पर भी कहीं न कहीं दाग है,
समंदर में भी कहीं न कहीं आग है।
ऊपर और नीचे होता खेल कुदरत का है
इंसान गाता मुख से अपना ही राग है।
शिष्टाचार बैठा है सोने के तख्त पर
सजावट में भ्रष्टाचार का पूरा भाग है।
कहें दीपक बापू दिखते सभी यहां इंसान
पर उनमें भी कोई भेड़िया कोई नाग है।
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कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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