आओ विकास के मसले पर बहस करे,
गड्ढों में सड़क है
अस्पतालों में दवायें नहीं तो क्या
चिकित्सक तो हैं,
बदबूदार है तो क्या
पानी मिलता तो है,
सच्चाई हमेशा कड़वी रहेगी
आओ कुछ देर के लिये
अपनी जुबान से
अपने दिमाग में कुछ सपने भरें।
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अंधे हाथी को पकड़कर कर
गलतबयानी करते
तो समझ में आता है,
मगर अब तो आंखें वाले भी
अपने अपने नजरिये से देखने लगे हैं,
दिमाग से नहीं रहा जुबां का रिश्ता
आंखों में तारों की जगह पत्थर लगे है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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