Monday, November 11, 2013

उधार का गड्ढे में पांव-हिन्दी व्यंग्य कविता (udhar ke gaddhe mein paanv-hindi vyangya kavita)



खूबसूरत चेहरे देखकर
यूं ही ताली बजाये जाते हो,
उनकी अदाऐं देखकर
मन ही मन ललचाये जाते हो।
शायद तुम नहीं जानते
बेची है बुतों ने अपनी तकदीर
बाज़ार के सौदागरों के हाथ
जिनके इशारे पर
शयों के पीछे तुम दौड़ाये जाते हो।
कहें दीपक बापू
पर्दे पर चलते अफसानों में
क्यों आंखें गड़ाये बैठे हो
अपने दिल बहलाने का
सामान पाने के लिये क्यों एैंठे हो
नकद नहीं जेब में
उधार के गड्ढे में
अपना पांव क्यों फंसाये जाते हो।
......................................


लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश 
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
 
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