कैमरे के सामने आते ही समाज सेवकों की बाछें खिल जाती
हैं,
चंदे के कारोबार में प्रचार की पंक्तियों की सांसें
मिल जाती हैं।
जन कल्याण की दुकानें शहर और गांव में जगह जगह खुल गयी
हैं,
मालिकों खाते चंदे की मिठाई जिसमें दान की मिश्री घुल गयी है,
देश के एक सिरे से दूसरे सिरे तक सेवकों की टोली फैली
है,
बेबसों की संख्या यथावत पता नहीं किसकी नीयत मैली है,
गायक गाते अभिनेता नाचते मजबूरों के लिये चंदा मांगते,
भूल जाते सब जब भरी जेब की पतलून घर में खूंटी पर
टांगते,
कहें दीपक बापू विकास दर के साथ गरीबी और बेबसी भी बढ़ी
हैं
समाज सेवा के कारोबारियों के खाते में रकम भी बढ़ती
जाती है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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