आम इंसान की सांसों को थाम रही बढ़ती महंगाई,
विकास के स्वर्णिम रथ से बंट रही गरीब को भलाई।
कहें दीपक बापू सबसे आसान है दिन में देखना सपने,
साकार करना कठिन हो तो लगें भगवान नाम जपने।
रिश्तों की डोर कभी टूटती नहीं यह सच बात है,
मगर मेहमानों की महंगी पड़ ही जाती एक रात है।
जेब में पैसा हो तो आशिक पर इश्क का भूत चढ़ता है,
खाली जेब से होता जब नाकाम दोष माशुका पर मढ़ता है।
दिमाग में सामान खरीदने की सूची बहुत लंबी बसी है,
मुश्किल है कुछ लोगों के हाथ दुनियां की हर शय फसी है।
परिवार और समाज टूटे अब खतरा इंसानी जज्बात पर आ रहा
है,
दौलत बसी कुछ घरों में बाहर बेबस आदमी नाखुश गुर्रा
रहा है।
लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
४.दीपकबापू कहिन
5.हिन्दी पत्रिका
६.ईपत्रिका
७.जागरण पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
९.शब्द पत्रिका
अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दयोग-पत्रिका
४.दीपकबापू कहिन
5.हिन्दी पत्रिका
६.ईपत्रिका
७.जागरण पत्रिका
८.हिन्दी सरिता पत्रिका
९.शब्द पत्रिका
No comments:
Post a Comment