इस लेखक को 17 अप्रेल 2014 को लोकसभा चुनाव
में भिंड क्षेत्र में सूक्ष्म प्रेक्षक के रूप में कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त
हुआ था। आमतौर से शहर में रहते हुए अखबार पढ़ने तथा टीवी पर समाचार देखते हुए अनेक
प्रकार के विचारों का क्रम चलता है पर जब चुनाव में काम करने का अवसर आता है तो
सारी चौकड़ी हवा हो जाती है। कहते हैं कि
चुनाव अधिकारी को निष्पक्ष होना चाहिये। हमने अनुभव किया है कि वहां निष्पक्ष तो
हर अधिकारी स्वतः ही हो जाता है क्योंकि वह पूरा समय इस बात का प्रयास करता है कि
चुनाव शांतिपूर्ण हो जायें-इसलिये वह न केवल निष्पक्ष दिखता है बल्कि होता भी है।
12 मई को नौवें दौर का चुनाव समाप्त हो
गया। अब तो परिणामों की प्रतीक्षा
है। हमारे अंदर चुनाव के दौरान तो कोई
हलचल नहीं थी पर परिणामों की एक महीने की प्रतीक्षा ने उदासीनता अवश्य ला दी थी।
अब अंतिम दौर समाप्त होने पर टीवी चैनलों
पर चुनाव विश्लेषण आ रहे हैं पर इनकी विश्वसीयता पर इनसे जुड़े लोग ही उठा रहे हैं। अनेक एजेसियों ने चुनाव परिणामों के संकेत
प्रचारित किये हैं पर सबसे ज्यादा सट्टेबाजों के निष्कर्ष चौंकाने वाले हैं।
क्रिकेट के बाद अब चुनाव के विषय पर उनकी सक्रियता अनेक प्रकार के प्रश्न खड़े कर
रही है। बहरहाल प्रचार माध्यम सट्टेबाजों
के आंकड़े भी उपयोग कर रहे हैं यह बात असहजता पैदा करने वाली है।
चार दिनों के इस इंतजार में टीवी चैनल अपने
विज्ञापनों के बीच तमाम तरह के समाचार प्रसारित करने के साथ ही उन पर बहसें करेंगे। देखा जाये तो चुनाव के लंबे दौर ने टीवी चैनलों
के लिये विज्ञापन प्रसारित करने का ऐसा अवसर प्रदान किया कि वह आईपीएल पर कम ही
ध्यान दे सके। इन चैनलों ने इस दौरान विवादास्पद बयानों का प्रसारण तथा उन पर
चर्चा कर अपने विज्ञापनों का समय जमकर पास
किया। महत्वपूर्ण बात यह कि इसमें शामिल
विद्वान कहते थे कि देश के मुद्दों पर चर्चा नहीं हो रही है पर सवाल यह है कि जिन
नेताओं ने मुद्दों पर बयान दिये उसे अखबार तथा टीवी वालों ने महत्व भी कहां दिया? वह तो सनसनी और विवादों के बीच अपनी कमाई का रास्ता ढूंढते रहे।
एक बात तय रही कि इस बार के चुनाव परिणाम
कैसे भी रहें, उनसे
इस बार के प्रचार माध्यमोें का लोगों पर जो उनके
प्रसारणों का होता है उसका अध्ययन सामाजिकं विशेषज्ञों को अध्ययन अवश्य करना चाहिये। यह प्रचार माध्यम
किस तरह मतदाओं के सामने नायक और खलनायक
गढ़कर उस पर प्रभाव डालते हैं इस बार के
चुनाव परिणामों में इसकी झलक देखने का प्रयास होना चाहिये। 16 मई को चुनाव परिणाम
आने वाले हैं। हमें उनके राजनीति के सामाजिक प्रभावों का अध्ययन भी करना
चाहिये। इस बात मतदान पहले की अपेक्षा
अधिक हुआ है और यकीनन इसमें आधुनिक संचार माध्यमों के प्रचार का भी योगदान है ऐसे
में यह सोच अवश्य पैदा होती है कि यह प्रचार माध्यम किसी का खेल बनाने और बिगाड़ने
में बहुत सक्षम है। कहने का आशय यह है कि लोकसभा चुनाव 2014 के परिणाम जहां पांच
साल के लिये भारत के शासक का निर्णय करेंगे वरन् उनसे यह भी निष्कर्ष ढूंढने का
प्रयास होना चाहिये कि प्रचार माध्यम किस
हद तक समाज को प्रभावित कर सकते हैं।
लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह कविता/आलेख इस ब्लाग ‘दीपक भारतदीप की अभिव्यक्ति पत्रिका’ पर मूल रूप से लिखा गया है। इसके अन्य कहीं भी प्रकाशन की अनुमति नहीं है।ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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