जिंदगी की जीने के तरीके हजार बताने वाले भी आते हैं।
पुरानी किताबों के नुस्खे पवित्र जताने वाले भी आते हैं।।
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अच्छे दिन में अपनी सुधबुध खो देते, बुरे दिन में बस यूं रो देते।
‘दीपकबापू’ हिसाब किताब में बीते दिन, बचे समय में लोग सो लेते।।
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अब अर्थ के लिये शब्द बोले जाते, दाम के लिये ही मुंह खोले जाते।
‘दीपकबापूं’ तय करते मत पहले, फिर स्वार्थ की तराजु पर तोले जाते।।
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सड़क पर अपनी जय बुलवायें, घर में मय की बोतल खुलवायें।
‘दीपकबापू’ परिवर्तन के वाहक, गरीब से मुफ्त में चंवर झुलवायें।।
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सपने बहुत पर जेब में पैसा नहीं, जीवन पर सोचते वैसा वह नहीं।
‘दीपकबापू’ संघर्ष करते निंरतर, परिणाम कभी चाहत जैसा नहीं।।
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अन्मयस्क लोग हर बार बदल जाते, सभी दिल का हाल छिपाते।
मुश्किल है किसी पर भरोसा करना पर यह ख्याल हम छिपाते।
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ऐ दिल तुझे समझाना
मुश्किल है
दुनियां देखने के लिये
तेरे पास आंखें नहीं
सच यह भी कि
रोक सकें तेरी सोच को
ऐसी सलाखें नहीं है
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कामनाओं के जाल में सभी फंसे हैं, दूसरे की लालच पर भी हंसे हैं।
‘दीपकबापू’ दे रहे त्याग का उपदेश, स्वयं लोभ के कीचड़ में फंसे हैं।
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