प्रधानमंत्री ने कहा है कि ईमानदार आदमी को नोटबंदी से परेशान होने की जरूरत नही है। हम संतुष्ट हैं। भले ही पहले दुर्भाग्य पर बाद में सौभाग्य मानते हैं कि अपनी सेवा में एक रुपये का भी दाग लिये बिना बाहर आये। एक तरह से कह सकते हैं कि हमारे भाग्य ने हमें जबरदस्ती ईमानदार बनाया पर अब भगवान का इसी बात के लिये धन्यवादी भी करते हैं कि जब कार्यालय से निकले तो मन में इस बात पर खुशी थी कि हम लोगों को बता सकते हैं कि ईमानदारी से भी जिंदा रह सकते हैं। इसलिये बड़े नोटों पर रोक से हमें कोई फर्क भी नहीं पड़ रहा है। मजा इस बात का है कि जिनकी ऊपरी कमाई देखकर मन में मलाल होता था अब उनके लिये तनाव का भारी दौर शुरु होने वाला है।
निम्न तथा मध्यम वर्ग की समस्या नोट बदलवाना नहीं वरन् व्यय के लिये मुद्रा जुटाना है इसलिये सरकार बैंक भले ही रविवार को बंद रखे पर उनको पूरा दिन सभी एटीएम चालू रखने को कहे। अब दस बीस पांच सौ या हजार के नोट बदलने पर मानवीय श्रम नष्ट करने की बजाय अधिक से अधिक लोगों को व्यय के लिये मुद्रा देने पर जोर होना चाहिये। हमें तो लग रहा है कि भीड़ मेें कुछ लोग मजबूर हो सकते हैं पर भीड़ में ऐसे लोग भी हो सकते हैं जो कालेधन वालों के लिये दलाली करते हुए आयें हों। अतः कोशिश यह होनी चाहिये कि किसी भी तरह निम्न तथा मध्यम वर्ग का आदमी एटीएम से पैसे निकालकर अपनी व्यय पूर्ति करे। यही राष्ट्रवादियों का वास्तविक साथी है।
बैंक वालों के पास सौ के नोट तो होंगे वह कहां गये उनको एटीएम में क्यों नहीं डाले। कहीं रातों रात उन्होंने पांच सौ वह हजार नोट वालों से बदल तो नहीं दिये। बाज़ार में दो हजार का नहीं वरन् सौ का नोट चाहिये। दो तीन दिन में स्थिति संभलना ही चाहिये निम्न व मध्यम वर्ग अपना घर चला सके।
इस देश में मूर्ख ज्यादा हैं या मासूम यह तो पता नहीं पर अज्ञानी बहुत हैं जो इस अफवाह पर ही नाचने लगते हैं कि नमक अब नहीं मिलने वाला। उन्हें मालुम नहीं है पूरे विश्व के सब प्राणी नष्ट हो जायें पर नमक कभी खत्म नहीं होगा।
गरीबों की चिंता करते दिखने जरूरी था पर नोट बदलने के लिये शनिवार और रविवार को बैंक खोलने की बजाय सरकार एटीएम भरवाने का आदेश देती। मध्यम वर्ग की समस्या नोट बदलने से ज्यादा खर्च के लिये नोट जुटाने की है और वह राष्ट्रवादियों की पूंजी है। एटीएम की नाकामी बड़े नोट बंद करने पर मिले जनसमर्थन खोने की तरफ ले जा रही है। अच्छा तो यह है कि सरकार शनिवार शाम छह बजे के बाद बैंक कर देश में सारे एटीएम भरने का आदेश दे क्योंकि ऐसा नहीं किया तो लोगों की समस्या बढ़ जायेगी। निम्न तथा मध्यम वर्ग के पास पांच सो तथा हजार के नोट बदलने के लिये इतने नहीं जितना उसके पास नयी नकदी का अभाव है। प्रतिद्वंद्वियों के तर्कों पर प्रहार करने की बजाय राष्ट्रवादी देश के प्रबंध पर ध्यान दें जिसमें बड़े अधिकारी इतने सक्षम नहीं है जितना दावा करते हैं। अगर देश के एटीएम कल तक काम नहीं कर पाये तो निम्न व मध्यम वर्ग नोटबंदी पर अपनी प्रसन्नता नहीं दिखा पायेगा। एक तरह से राष्ट्रवादी भी अकुशल प्रबंध के आरोप को अपने ऊपर लेने जा रहे हैं।
वरिष्ठ समाज सेवकों को चाहिये कि बैंकों के बाहर लोगों की पंक्ति में खड़े होकर मनोरंजन करें ताकि समय अच्छा पास हो। इससे एक दिन तो समाजवाद का रूप देखकर खुशी होगी। अनेक लोग सोशन मीडिया पूछ रहे हैं कि क्या नोट बदलने या निकालने की पंक्ति में किसी खास आदमी को देखा है क्या? हम तो गये थे लाइन में लगने पर कोई खास आदमी न देखकर लौट आये।
1 comment:
खास आदमी के लिए ख़ास आदमियों की कमी नहीं है न। . क्यों नज़र आएंगे वे? लाइन में लगेंगे तो खास कैसे रहेंगे ...परेशानी तो आम जनता के सर माथे लिखी होती है न
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