Monday, January 09, 2017

लालच के बने गुलाम-हिन्दी कविता (Lalach Ke Gulam-Hindi Kavita)


अपने घर सजा रहे
पेड़ उजाड़कर
वन के माली।

खजाने के पहरेदार
लालच के बने गुलाम
कर दिया खाली।

माया का डंडा चलता
बजा रहा पूरा ज़माना
जोर जोर से ताली।
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देसी लोग
लिखपढ़कर विदेसी जैसी हो जाते हैं।

अपनी ज़मीन नहीं दिखती
विदेशी सोच में खो जाते है।

देखा नहीं लंदन
लगा रहे  अंग्रेजी का चंदन
समझी नहीं गीता
गड़बड़ चिंत्तन से
अज्ञान का वाङ्मय ढो जाते हैं।

उठाते प्रश्न शोर मचाकर
फिर सो जाते हैं।

कहें दीपकबापू विचार के खजाने
खाली कर चुके अक्लमंद
हर हादसे पर
हमदर्दी में बस रो जाते हैं।
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