कोई मुंह फेरता कोई निहारता
सबके अलग अंदाज हैं।
फकीरों ने पाई आजादी
राजाओं के बंधन अपने राज हैं।
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अपनों ने ही नश्तर चुभोये हैं,
इतिहास में गैर तो दुश्मनी ढोये हैं।
‘दीपकबापू’ अपने काम का बहीखाता देखें
अपनी नाकामी आप बोये हैं।
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हर दर के बाहर
फरिश्ते की नाम पट्टिका लगी है।
चमकते अक्षर बताते
कहीं न कहीं पहचान की ठगी है।
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दिल दिमाग में उसका नाम नहीं होता,
जिसमें कभी काम नहीं होता।
‘दीपकबापू’ यायावार होने का लेते मजा,
यार बांके की यारी का दाम नहीं होता।।
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सड़क के राहगीर कहां पहचाने जाते,
पाप ढोते धोने चाहे जहां नहाने जाते।
‘दीपकबापू’ ईमानदार हिसाब नहीं देते
अब बेईमानों के प्रहरी जो जाने जाते।
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विकास के साथ
कचड़े का भी पहाड़ खड़ा है।
दीवार पर चमकती तस्चीर के पीछे
काले कागज की तरह जड़ा है।।
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यह जो तुम विकास दिखा रहे हो,
वह कचड़े का पहाड़ क्यों छिपा रहे हो।
‘दीपकबापू’ विष के उगाये पहाड़
प्रचार में अमृत लिखा रहे हो।।
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वह अपने घर में लगाते तस्वीर
हमारी दीवार पर भी दिख जाती है।
दूर बैठे तो भेंट नहीं होती
उनकी हंसी दिल पर खुशी लिख जाती है।
सबके अलग अंदाज हैं।
फकीरों ने पाई आजादी
राजाओं के बंधन अपने राज हैं।
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अपनों ने ही नश्तर चुभोये हैं,
इतिहास में गैर तो दुश्मनी ढोये हैं।
‘दीपकबापू’ अपने काम का बहीखाता देखें
अपनी नाकामी आप बोये हैं।
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हर दर के बाहर
फरिश्ते की नाम पट्टिका लगी है।
चमकते अक्षर बताते
कहीं न कहीं पहचान की ठगी है।
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दिल दिमाग में उसका नाम नहीं होता,
जिसमें कभी काम नहीं होता।
‘दीपकबापू’ यायावार होने का लेते मजा,
यार बांके की यारी का दाम नहीं होता।।
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सड़क के राहगीर कहां पहचाने जाते,
पाप ढोते धोने चाहे जहां नहाने जाते।
‘दीपकबापू’ ईमानदार हिसाब नहीं देते
अब बेईमानों के प्रहरी जो जाने जाते।
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विकास के साथ
कचड़े का भी पहाड़ खड़ा है।
दीवार पर चमकती तस्चीर के पीछे
काले कागज की तरह जड़ा है।।
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यह जो तुम विकास दिखा रहे हो,
वह कचड़े का पहाड़ क्यों छिपा रहे हो।
‘दीपकबापू’ विष के उगाये पहाड़
प्रचार में अमृत लिखा रहे हो।।
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वह अपने घर में लगाते तस्वीर
हमारी दीवार पर भी दिख जाती है।
दूर बैठे तो भेंट नहीं होती
उनकी हंसी दिल पर खुशी लिख जाती है।
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