फिर भी जमाने से चाहते हैं प्यार
हो गये हैं दीवानों से
लगाते हैं एक दूसरे पर इल्जाम
खेल रहे हैं दुनिया भर के ईमानों से
अपने तकदीर की लकीर बड़ी नहीं कर सकते
इसलिए एक दूसरे की थूक से मिटा रहे हैं
तय कर लिया है खेल आपस में
जंग का शतरंज की तरह
इसलिए अपने मोहरे पिटवा रहे हैं
जीतने वाले की तो होती चांदी
हारने वाले को भी मिलता है इनाम
नाम के लिए सभी मरे जा रहे हैं
सजाओं से बेखबर कसूर किये जा रहे हैं
कभी भेई टूट सकता है क़यामत का कहर
पर इंसान जिए जा रहे हैं अक्ल के परदे बंद कर
भीड़ दिखती हैं चारों तरफ पर
शहर फिर भी लगते हैं वीरानों से
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
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1 comment:
इंसानों से नहीं होती अब वफादारी
फिर भी जमाने से चाहते हैं प्यार
हो गये हैं दीवानों से
लगाते हैं एक दूसरे पर इल्जाम
खेल रहे हैं दुनिया भर के ईमानों से
bahut khoob ....waah....
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