Monday, November 24, 2008

भीड़ में अपनी पहचान हो जाने की चिंता-हिंदी शायरी

नायक बेचने के लिये
उनको खलनायक भी चाहिए
अपने सुर अच्छे साबित करने के लिये
उनको बेसुरे लोग भी चाहिए
यह बाजार है
जहां बेचने वाला
खरीददार की फिक्र करता नहीं
उसकी जेब का कद्रदान होता है
सौदा बेचने के लिये
बेकद्री भी होना चाहिए
ओ बाजार में अपने लिये
चैन ढूंढने वालों
जेब में पैसा हो तो
खर्च करने के लिये अक्ल भी चाहिए
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बाजार में भीड़
पर भीड़ में अक्ल नहीं होती
बिकती अक्ल बाजार में
तो भला भीड़ कहां से होती
इसलिये सौदागर चाहे जो चीज
बाजार में बेच जाते हैं
जो ठगे गये खरीददार
शर्म के मारे कहां शिकायत लेकर आते हैं
भीड़ में अपनी कमअक्ल की
पहचान हो जाने की चिंता सभी में होती

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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

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