उसी तरह हमारे देश में अनेक संप्रदाय हैं जिनके गुरु सासंरिक वस्त्र नहीं पहनते अपर भक्तगण उनके आगे शीश नवाते हुए कभी संकोच नहीं करते क्योंकि उनमें उनको भक्ति और ज्ञान के ऐसे स्वरूप के दर्शन होते हैं जहां अश्लीलता और श्लीलता का बोध नहीं रह जाता। कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां विवाह के समय पुरुष लोग बारात में जाते हैं तो महिलायें एक दूसरे से अश्लील और अभद्र शब्द बोलकर मनोरंजन की परंपरा का निर्वाह करती हैं।
सीधा आशय यह है कि अगर हमारी इंद्रियों में शालीनता है तो फिर बाहर कहीं कुछ अश्लील नजर नहीं आयेगा। कोई लड़की कम कपड़े पहनकर निकले तो उसकी जांघों पर निगाह जाती है पर अगर वह अगर वह सलवार कुर्ता या साड़ी पहने हुए हो तो तब भी क्या उनको कोई नहीं देखता? फिर क्या अगर कोई आकर्षक पुरुष जाता है तो क्या उस पर भी नजर नहीं जाती?
लड़कियां कम कपड़े पहनकर घर से निकलती हैं तो लड़के उत्तेजित होकर छेड़ेंगे ही-यह तर्क देने वाले गलती पर हैं क्योंकि जो ढंग से कपड़े पहनकर निकलती हैं तो उनको भी लड़के छेड़ते हैं। यह छेड़ने की परंपरा तो कई सदियों से चल रही हैं। छेड़ने वाले तो घूंघट करने वाली लड़कियों को छेड़ते हैं। कुछ लोगों की आदत होती है और कुछ इतने खुद्दार होते हैं कि वह छेड़ने की बात सोचना भी घटिया समझते हैं।
आशय यह है कि देखने के नजरिये से श्लीलता और अश्लीलता तय होती है। इस मामले में एक दिलचस्प वाक्या हमें याद आता है। अपने वर्डप्रेस के ब्लागों@पत्रिकाओं पर एक फोटो वाली वेबसाइट वाली का लिंक लगाया था। उसके बाद अचानक ही पाठकों की संख्या बढ़ गयी थी। कई दिन हो गये पर स्वयं कभी फोटो देखने का प्रयास भी नहीं किया। एक दिन हमने ब्लाग स्पाट के ब्लाग पर एक चित्र अपने कंप्यूटर से लोड किया। अपने श्रीमुख का फोटो हमें पसंद नहीं आ रहा था सो एक फूलों वाला फोटो लोड किया। अगले दिन हमारे एक ब्लाग लेखक मित्र ने ईमेल किया और हमसे कहा-‘वाह! आपने क्या गजब का फोटो लगाया है।’
हमारे समझ में कुछ नहीं आया हमने भी लिख दिया कि ‘ऐसे ही लोड कर लिया। सोचा इससे ब्लाग में आकर्षण आयेगा।’
उनसे वार्तालाप समाप्त हुआ तो फोटो वाली बात हमारे दिमाग में आयी। हमने सोचा उस फोटो में ऐसा क्या है जो वह ब्लाग मित्र को अधिक पसंद आया? ऐसा सोचते हुए हम अपने वर्डप्रेस के एक ब्लाग के डैशबोर्ड पर गये तो देखा उस फोटो वाली वेबसाइट को भी अनेक लोगों ने देखा था। उस पर ध्यान नहीं जाता अगर फोटो वाली बात हमारे दिमाग में नहीं बनी होती। तब हमारा माथा ठनका। हमने जाकर वह फोटो देखा। बाप रे! बस उसी समय हमने अपनी वर्डप्रेस की वेबसाईटों से वह फोटो वाली वेबसाईट हटा ली। उसके बाद हमारी पाठक संख्या गिर गयी पर उसकी परवाह हमें नहीं की।
हमने भी तय कर रखा है कि फोटो दिखाने वाले बहुत हैं पर हमें तो अपने शब्दों की शक्ति पर निर्भर रहना है। अगर फोटो से हमारे पाठक बढ़ते हैं तो उससे न तो हमें कोई अर्थिक फायदा है और न ही सम्मान या प्रतिष्ठा मिलने की संभावना है। हमने फोटो इसलिये नहीं हटाया कि हमें फोटो अश्लील लगा बल्कि उससे लेकर लोग चार बातें करेंगे इसी कारण उसे हटा लिया। बेकार में अश्लीलता का आरोप क्यों लें? अगर कोई लाभ हो तो यह भी लोगों को समझायें कि फोटो कभी अश्लील या श्लील नहीं होता बल्कि नजरिये में होता हैं। जब कोई फायदा न हो तो फिर केवल उसी मुद्दे पर करेंगे जिससे अपना मन प्रसन्न होता है। बिना लाभ के दूसरे के तय मुद्दों पर चलना एक तरह से बेगार है। आशय साफ है कि जिनको फायदा है वह अश्लीलता भी प्रस्तुत करेंगे पर हमारा नजरिया क्या है, यह अधिक महत्वपूर्ण है। बाकी तो बहस के लिये अनेक गैर वाजिब मुद्दे हैं मगर यह तो सदाबहार मुद्दा है। चाहे जब श्लीलता और अश्लीलता पर बहस छेड़ दो। जिन लोगों का टाईम बहस में अच्छा पास होता है उनके लिये यह एक स्थाई मुद्दा है।
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लेखक के अन्य ब्लाग/पत्रिकाएं भी हैं। वह अवश्य पढ़ें।
1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका
4.अनंत शब्दयोग
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
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