Sunday, February 22, 2009

तय कर लिया है अक्ल के गुलामों ने-हिन्दी शायरी

उन्हें इन्तजार है
विदेश में कहीं अपने देश की कहानी पर
बनी फ़िल्म को पुरस्कार मिलने का ।
अक्ल के अंधों ने नहीं देखा अपना घर
ढूंढ रहे हैं सम्मान के लिए पराया दर
यह देश है गुलामों का
आदमी सोचते आदमी की तरह
चाहे सब मिलकर देश बन जाएँ
तब भी मोह नहीं छोड़ पाते पराये सम्मानों का
चाहे भले ही टाट में पैबंद की तरह लग जाएँ
पर गोरे के तन से लगने के लिए
भरते हैं आहें
देह की आज़ादी का भ्रम अभी टूटा नहीं
गुलामी से मन कभी छूटा नहीं
तय कर लिया है अक्ल के गुलामों ने
जब तक मालिक इशारा न करे
तब तक अपनी जगह से नहीं हिलने का ।

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