Thursday, February 26, 2009

अपनी मुट्ठी में पानी भरते बारंबार-हिंदी शायरी

एक से सौ
सौ से हजार
हजार से लाख
करोंड़ों की दौलत का इंसान ने लगा लिया अंबार
नहीं है उसे सुख की अनुभूति, बैचेनी है अपार।
जिन शयों को पुराना होना है
अपने सामने
उनके पीछे दौड़ रहे हैं लोग
लोगों के पीछे दौड़ रहे रोग
अंधे कुऐं में इधर उधर टकराकर
लोग ढूंढ रहे खुशियां
फिसल जायेगा थोड़ी देर में हाथ से
फिर भी इंसान
अपनी मुट्ठी में पानी भरते बारंबार

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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

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