Tuesday, June 02, 2009

दूसरे के बदले से अपने को कैसे बचाओगे-हिंदी शायरी

आग लगी थी किसी दूसरे घर में
अंधेरा उन्होंने अपने यहां कर लिया।
हादसे की खबर के इंतजार में
गम के इजहार के लिए
पकड़े खड़े हैं हाथ में मोमबती और दिया।
मजमा देखने जाती भीड़ से
अपने घर के अंदर के नजारे
छिपाने की एक कोशिश भी थी यह
हमदर्दों में अपना नाम भी लिखा लिया।
.............................
दूसरे के घरों होती जंग
देखकर कब तक दिल बहलाओगे।
अपने यहां फैले खतरे को
अपने से कितना छिपाओगे।
अभी तो उछाल रहे हो
अपने लफ्ज पत्थर की तरह
पर जब फैलेगी बगावत तुम्हारे यहां
तब दूसरे के बदले से
अपने को कैसे बचाओगे।

.............................
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

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