Monday, June 22, 2009

अपना ही बिकना छिपाते-त्रिपदम (hindi tripadam)

हिंसा सजी है
उनके शब्दों में
क्रांति दिखाते।

‘पूंजी’ के प्रेमी
‘पूंजीवाद के बैरी
भ्रांति फैलाते।

कहीं की जंग
उसका इतिहास
यहाँ बिछाते।

विचार युद्ध
जो जीता नहीं गया
यहां भी लाते।

बिना पति के ‘पूंजी’
सजकर नाचेगी
कैसे दिखाते।

गरीब श्रम
कभी आजाद होगा
बस नारे लगाते।

सच से परे
उनकी दुनियां है
उसे छिपाते।

पसीना पति
उनके खाली नारे
न सुन पाते।

क्रांति काफिले
आकाश में चलते
नीचे न आते।

पेट की भूख
रोटी से ही बुझती
वादे सताते।

खुले बाजार
अपना ही बिकना
वह छिपाते।

वाद व नारे
संसार में बजते
काम न आते

..........................
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

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