Friday, October 29, 2010

कविता दिखायें कि सुनायें-हिन्दी व्यंग्य कविता (kavita dikhayen ki sunayen-hindi satire poem)

कदम कदम पर धोखे की खबर,
घोटाले बढ़ रहे जैसे हो कि कोई रबड़,
किसको याद रखें किसे भूल जायें,
शोर के आदी हो गये लोग,
सुनने की कोशिश करते
जबकि घेर चुका है बहरेपन का रोग,
ऐसे में सोचते हैं कि अपनी
अभिव्यक्ति की कौनसी चुने अदायें,
कविता दिखायें कि सुनायें।
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गूंगे कविता कहेंगे,
बहरे ताली बजायेंगे जब सुनेंगे,
घोटाले ऐसे ही तो बुनेंगे।
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप, Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com

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