रुपहले पर्दे पर जो चेहरे बूत दिख रहे हैं,
बाज़ार के सौदागरों हाथ बिक रहे हैं।
कहें दीपक बापू खबर और फिल्म एक समान
होता वही है जो पटकथाकार लिख रहे हैं।
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खबरची लोगों के मन की बात भांप रहे हैं,
रुपहले पर्दे पर कुछ लोग खुश तो कुछ कांप रहे हैं।
कहें दीपक बापू मन तो पल पल में बदलता है,
महीनों बाद के फैसले पर अभी विद्वान हांफ रहे हैं।
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रुपहले पर्दे पर रोज नया सर्वे आता है,
कोई नायक कोई खलनायक बन जाता है।
कहें दीपक बापू माया का विज्ञापन रूप भी है
लोगों की भलाई का नारा भी दाम दे जाता है।
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लेखक और कवि-दीपक राज कुकरेजा "भारतदीप"
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
Writer and poet-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior, Madhya pradesh
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’ग्वालियर
jpoet, Writer and editor-Deepak 'Bharatdeep',Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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