नियम से गुजर जाता है
बचपन गुजरता है खेलते हुए
जवानी गुजरती है सोते हुए
बुढ़ापा रोने में गुजर जाता है
ऐसे ही आदमी भी
पहले बनता है परिश्रमी
फिर समाज का बनता है आदर्श
जब आता है घौटाला सामने
तब वह खलनायक बन जाता है
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1.दीपक भारतदीप की शब्द पत्रिका
2.दीपक भारतदीप का चिंतन
3.दीपक भारतदीप की शब्दज्ञान-पत्रिका
4.अनंत शब्दयोग
कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
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