Tuesday, March 03, 2009

लाहौर में श्रीलंका की क्रिकेट टीम पर हमला चिंताजनक-आलेख

पाकिस्तान के लाहौर में श्री लंका क्रिकेट टीम पर हुए हमले को एक सामान्य घटना मानना ठीक नहीं है। इतिहास में बहुत सारी घटनायें दर्ज होती हैं पर अपनी विशिष्टता के कारण कुछ को अधिक सुना जाता है। किसी देश की राष्ट्रीय खेल टीम पर किया गया यह दूसरा हमला है। शायद बहुत कम लोगोें को याद होगा कि म्यूनिख ओलंपिक में इजरायल फुटबाल टीम में सात सदस्यों की हत्या पहले हो चुकी है। वह भी एक आतंकवादी हमला था और उस समय लोगों ने इस बात की कल्पना तक नहीं की थी कि आगे चलकर यही आतंकवाद विश्व में इतना भयावह रूप में सामने आयेगा।

वैसे तो पाकिस्तान पर अक्सर आतंकवादी घटना होती हैं पर इस घटना को उनके क्रम में मानना आतंकवादियों द्वारा दिये गये भविष्य के संकेत को अनदेखा करना होगा। आस्ट्रेलिया ने तो पहले ही पाकिस्तान जाने से इंकार कर दिया था। पाकिस्तान में आतंकवाद होने के बावजूद भारतीय टीम वहां जा चुकी है और उसका दौरा शांति से संपन्न हो गया। उसके बाद फिर कुछ टीमें वहां खेलने गयी जिनमें इंग्लैंड भी शामिल था। कुल मिलाकर अभी तक क्रिकेट खेल अभी तक आतंकवादी हमलों से बचा हुआ था।
अखबारों में अक्सर इसको लेकर अनेक प्रकार के तर्क दिये जाते रहे हैं। पहला तो यह है कि पाकिस्तान की सरकारी संस्थाओं द्वारा ही आतंकवादियों को प्रशिक्षण दिया जाता है और इसलिये वह क्रिकेट की सुरक्षा पर सरकार की गंभीरता के कारण उस पर हमला नहीं करते। दूसरे कुछ तर्क देने वाले तो यह भी तर्क देते हैं कि क्रिकेट से जुड़े कुछ पाकिस्तानी तत्व आतंकियों के आर्थिक संरक्षक भी हैं इसलिये वह ‘जिस थाली में खाते हैं उसमें छेद नहीं करने‘ की नीति के तहत क्रिकेट मैचों पर हमला नहीं करते।

लाहौर में श्रीलंका क्रिकेट टीम पर हुए हमले से दो ही निष्कर्ष निकलते हैं कि एक तो यह कि आंतकवादियों को प्रशिक्षित किसी ने भी किया हो पर वह उनके नियंत्रण से बाहर हो रहे हैं। दूसरा यह कि कुछ नये आतंकी गुट अपना वर्चस्व स्थापित कर अपने लिये धन संग्रह के लिये ऐसी घटनायें कर अपना धंधा जमाना चाहते हैं। इन सबसे अलग एक निष्कर्ष यह भी है कि पाकिस्तान की सेना ही इन आतंकवादियों की माई बाप है और अब देश में लोकतंत्र स्थापित होना उसे रास नहीं आ रहा इसलिये वह पाकिस्तान के आका मुल्कों को यह संदेश भेज रही है कि उसके बिना पाकिस्तान बच नहीं सकता। भारत के कुछ लोगों का यह मानना ठीक है कि यह आतंकवाद पाकिस्तान की ही उपज है। इस तर्क में सच्चाई का एक कारण यह भी है कि जब पाकिस्तान में मुशर्रफ का शासन था तब लाहौर मेंं तनाव होने के बावजूद भारत ने वह एकदिवसीय मैच खेला और वह शांति से संपन्न हो गया। मतलब सेना अगर गंभीर हो तो वहां इस तरह के हमले नहीं होते। सेना का शासन जब तक था तब तालिबान ने कहीं सिर नहीं उठाया फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि स्वात घाटी के बाद अब उनके कराची पर संभावित कब्जे की बात हो रही है। स्पष्टतः सेना उतावली में है वह नहीं चाहती कि पाकिस्तान में लोकतंत्र फलेफूले। अनेक तरह के दावों के बावजूद यह सच्चाई है कि पाकिस्तान की सेना आज भी आतंकवादियों को प्रशिक्षण दे रही है। अनेक देश यह जानते हुए भी पाकिस्तान को आर्थिक मदद दे रहे हैं कि उस पैसे से आतंकवाद को ही सहारा मिल रहा है। इस समय पाकिस्तान के कुछ मित्र देश वहां के नकली लोकतंत्र पर प्रसन्न हैं यह जानते हुए भी वहां की सरकार सेना की बंधक हैं।

मुंबई हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान का दौरा सुरक्षा कारणों से स्थगित कर दिया था। ऐसे में श्रीलंका ने उसके स्थान पर यह दौरा किया था। हालांकि खेलों में राजनीति नहीं होना चाहिये पर श्रीलंका का यह पाकिस्तान दौरा खेल के लिये कम राजनीति से अधिक प्रेरित था ताकि भारत को एक तरह से चिढ़ाया जा सके। इन मैचों के दौरान श्रीलंका के राजनीतिक नेताओं की उपस्थिति आखिर किस खेल प्रेम की प्रतीक है यह तो वही जाने पर यह तय है कि इसमें उनकी एक तरह से राजनीति थी। जैसा कि हम जानते हैं कि आतंकवाद को सभी राष्ट्र अपनी सुविधा के अनुसार भला और बुरा मानते हैं और इसी कारण वह खत्म होने की बजाय बढ़ रहा है। आतंकवाद की मार को भारत से भी पहले झेल रहा श्रीलंका मुंबई हमले के बाद भारतीय क्रिकेट टीम के न जाने के फैसले का मजाक उड़ाते हुए वहां अपनी टीम भेजने के लिये तैयार हो गया। मतलब यह कि लिट्टे आतंकवादी संगठन है पर पूरा का पूरा देश पाकिस्तान ही आतंकवादियों का गढ़ है उसे मुंबई हमले पर सजा देने की बजाय श्रीलंका अपनी क्रिकेट टीम भेजने के लिये इसलिये तैयार हो गया क्योंकि मुंबई पर हमला करने वाले आतंकवादी उसके शत्रु नहीं थे। इस तरह की नीति विश्व में आतंकवाद को प्रोत्साहित करती है इसे जिम्मेदार लोग नहीं समझते।

जिस तरह लाहौर हमले के फुटेज टीवी पर दिख रहे हैं उससे तो यही लगता है कि आतंकवादी बड़े आराम से हमले कर रहे थे। सभी सुरक्षित निकल गये और यह चीज संदेह पैदा करती है कि पाकिस्तान के सुरक्षाबलों के कौशल या नीयत में से किसी एक या दोनों की कमी है। टीवी पर यह भी बताया कि जिस चैक पर हमला हुआ वहां हमेशा सुरक्षाबल रहते थे पर हमले वाले दिन वह दिखाई नहीं दिये। अब आगे इस जांच में क्या आयेगा यह कहना कठिन है पर पाकिस्तान शक की सुई भारत की तरफ घुमाने का पूरा प्रयास करेगा। जिस तरह कसाब मामले में उसने बयान बार बार बदले उससे तो यही लगता है कि वहां के नेता चाहे जो भी कह सकते हैं भले ही उसका सिर पैर न हो।

बहरहाल पाकिस्तान का अस्तित्व लगभग खत्म ही हो गया है पर उसकी आधिकारिक पुष्टि अभी संभव नहीं है। इस तरह हिंसा का खेल वहां अब आसानी से थमेगा लगता नहीं है। वैसे कुछ लोगों मजाक में कहते हैं कि पाकिस्तानी सैनिकों और तालिबानों में कोई अधिक अंतर नहीं है क्योंकि दोनों का प्रशिक्षण स्थल तो एक ही होता है। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि पाकिस्तान में तो बस सैनिक अफसर है और बाकी उन्होंने अपने नीचे ऐसे लोगों को नियुक्त कर रखा है जिनको चाहे जब सैनिक के रूप में या आतंकवादी के रूप में उपयोग कर सकें। भारतीय टीवी चैनल द्वारा ही एक टीवी चैनल के उस प्रश्न की जानकारी दी गयी है जिसमें हमला किये गये चैक पर प्रतिदिन सुरक्षा बलों की गश्त हमले वाले दिन न रहने का जिक्र किया गया है। इसका तो एक ही जवाब दिया जा सकता है कि उस दिन शायद उन्होंने अपना कार्य और वर्दी बदली थी इसलिये शायद वह वैसे नहीं दिखे जैसे दिखना चाहिये पर तो वह वहीं मौजूद थे इसलिये लोग पहचान नहीं पाये। अपना काम खत्म कर फिर वह अपनी पुरानी जगह पर आ गये होंगे। जिस तरह हमला कर आतंकवादी फरार हो गये उससे पाकिस्तान की सरकार संस्थाओं पर ही शक की उंगली उठेगी इसमें संदेह नहीं है।

श्रीलंका क्रिकेट टीम के सभी खिलाड़ी सुरक्षित बच गये यह अच्छी बात है। वह शीघ्र स्वस्थ हों यह हमारी कामना है। खिलाडि़यों पर हमला करना निंदनीय घटना है पर आतंकवादियों को इससे क्या फर्क पड़ता है? सच बात तो यह है कि सभी देश आतंकवाद को एक स्वर में अपना दुश्मन नहीं मानेंगे तब तक वह अस्तित्व में रहेगा।
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