Wednesday, March 11, 2009

अपना कदम पीछे हटाया-व्यंग्य कविता

नकली चेहरा लोग लगा लेते हैं।
पर रंग भी असली कहां आते
इसलिये ही नकली रंग से होली मना लेते हैं।

होली पर ही नहीं होते चेहरे रंगीन
यहां तो हर रोज लोग
खुद ही रंग लगा लेते हैं
आदमी की पहचान चेहरे से नहीं
दिल की नीयत से होती है
कोई झांक कर न देखे अंदर
इसलिये लोग रोज
देखने वालों को रंग से बरगला देते हैं।
.......................
उनके चेहरे पर वैसे ही रंग
बहुत लगे थे
इसलिये अपना रंग जाया न करने का
ख्याल हमारे दिल में आया।

उनके पास भी बहुत रंग थे
हमारे साफ चेहरे पर लगाकर
तरस न खायें
अपनी उदारता का अहंकार न जताये
उनसे पहले किसी ने हमसे होली खेली नहीं
इसकी अनुभूति न करायें
इसलिये हमने उनके दरवाजे से ही
अपना कदम पीछे हटाया।

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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप

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