जिसके चारों और फैली हरियाली
अंदर कमरें में महंगे सोफे पर वह शख्स
सामने टीवी पर चलते दृश्य
हाथों में रिमोट से
बदलता है वह परिदृश्य
दिमाग में छाये तनाव के बादल
भौतिकता के शिखर पर बैठकर
बेचैनी उसका पीछा नहीं छोड़ती
आखिर दौलत,शौहरत और बड़ा ओहदा
सुख का प्रतीक माने जाते
पर फिर भी दुःख की अनुभूति
यह सब कुछ मिल जाने पर
आदमी का पीछा क्यों नहीं छोड़ती
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2.दीपक भारतदीप का चिंतन
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कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप
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